रात सुहानी बीत गई तो...... - नीता झा
समझो के सवेरा आ ही गया।।
काले मेघों के रंग घनेरे...
कुछ उजले से दिख जाएं तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
सोई पड़ी आंखें खुल जाए तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
मीत गगन के गाएं प्रभाती तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
स्याह भुवन उजले हो जाएं तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
और दुख सुख चाहे कितने भी हो।।
सपनो के खट्टे मीठे अहसासों के...
आंखों से क़तरे रिस जाएं तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
इतिहास सुनहरे गढ़ने के जब।।
भाव मानस में आ जाए तो...
समझो के सवेरा आ ही गया।।
गृहस्थ जीवन के लोभ सभी...
शून्यकाल से हो जाएं तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
वानप्रस्थ से भाव जागें तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
क्या फर्क वन में या भवन में।।
खुद को खुद में तलाश करो तो...
समझो के सवेरा आ ही गया।।
मन बैरागी मनुहार करे और...
सुप्त चेतना जागृत हो जाए तो।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
रात सुहानी बीत गई।।
समझो के सवेरा आ ही गया...
समझो के सवेरा आ ही गया।।
नीता झा
Optimistic , nice poem.
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