तलाक़ क्या होता है
उस बूढ़ी दादी से पूछो
जिसने चमत्कारी रूप से
मौत को मात दी थी
पोते की शादी की बात सुन
तलाक़ क्या होता है
उन उदास जोड़ों से पूछो
जिन्होंने पूरी दुनिया से बैर लिया
अपने बच्चों की खातिर
आज भी लड़ रहे हैं
खुद से,दुनिया से और
अपने टूट रहे अधेड़ सपनो से
तलाक़ क्या होता है
उन नन्हे नन्हे रिश्तों से पूछो
जो तुम्हे अपना आदर्श समझते हैं
तुम्हारी पीड़ा देख देख कर
विवाह को ग़लत समझते हैं
तलाक़ क्या होता है
उस बहन से पूछो
जिसे रोज़ सुनने होते हैं
खुद अच्छी हो भी उलाहने
बार बार साबित करना होता है
अपने आपको उसेजूझना होता है
तलाक क्या होता है
उन दो जोड़ी आंखों से पूछो
जो तुम्हारी रोज़, रोज़ की
फ़ूहड़ लड़ाई देखती हैं
चुपचाप तुम्हारे कठोर
उद्दंड आदेश को न मान
दोनों हथेलियों से ख़ुद को
पूरी ताक़त से दबती हैं
इतना कि दर्द से आंसू निकले
तलाक़ क्या होता है
उन नन्ही हथेलियों से पूछो
जो तुम्हारे कठोर वचन सुन
कानो को ढंक लेती हैं
कानो को ढंक लेती हैं
जब तुम बहुत उदास
और अवसाद से भरे
उसके पास आकर
सोने के नाम पर
सोने के नाम पर
पलकें भिगोते हो
तभी वो नन्हे हाथ
डरते सहमते तुम्हारे
निकल आए आंसू पोंछते हैं
कभी तुम्हारी क्रोधवश पड़ी
अकारण पड़ी मार से खुद को बचाते है
तलाक़ क्या होता है
उस नन्ही ज़बान से पूछो
जिसे हर वयस्क ,अबोध,
फिक्रमंद,चालक,निर्णायक,विदूषक
और धूर्त सवालों के जवाब देने होते हैं
जो ये भी नही जानता कि
वह आया कहाँ से है
उससे पूछा जाता है
तुम्हे किसके साथ रहना है
तुम्हे कौन पसन्द है
वो नही समझ पाता
किसे छोड़े किसे अपनाए
तुम उसे अहसास कराते हो
उसका जीवन मुश्किलों भरा है
उसकी वजह से तुम मर भी नही सकते
पर उस नन्ही पौध की मासूमियत का क्या
जो तुम्हारे फैसले के चाबुक से
रोज तिल तिल मर रही है
लोग चाहे उसे जिद्दी,धमण्डी,बदमाश
या सीधा सदा मासूम नाम दें
वोतो बेचारा अवसादों में घिर जाता है
खुद को मिली सुविधाओं के हिसाब से
अपने जीने के तरीके गढ़ता रहता है
तलाक़ क्या होता है
उस बच्चे से पूछो जिसपर
इसे थोप गया था
यह कह कर की
इस बैग में अपने जरूरी सामान रखलो
पर कोई नही समझेगा उसकी जरूरी चीजें
दादी की कहानी,दादा की दोस्ती वाली चॉकलेट
चाचा की बाइक रेसिंग,बुआ की चुलबुली शरारतें
छोटे ,बड़े भाई बहनों के साथ पड़ना,हंसना,खेलना
पूरे परिवार के साथ पिकनिक पर जाना
ऐसे ही अनगिनत लम्हे
श्यामा गाय का मीठा दूध,
उसके बछड़े संग रेस लगाना,
करण से पहले पूजा के फूल
दादी को दे पहले प्रसाद पाना
पूरे परिवार,मुहल्ले की जान है वो
उन्हें छोड़ मम्मी के साथ जाना
सिर्फ गर्मियों में नही हमेशा के लिए
वो कैसे रहेगा मन ही नही लगता वहां
पर किया क्या जा सकता है
सिवाय इसके की चाहे जो हो
वो अपने बच्चे को यह सब सहने न देगा
और वह बैग जमाने लगा जाने को
हक़ीक़त तो न स्मरहि थी बैग में
चन्द सपने गढ़ने लगा बैग भरने को
नीता झा
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