और सब ठीक हो गया – नीता झा


कुछ शब्द जो पारे की तरह कानों में पड़ते हैं। जिन्हें सुनना, सहना आसान नहीं होता....
 पर किया भी क्या जाए....
 कितनो के मुह बन्द करें और किस किस बात पर....
माँ गुस्से में बड़बड़ाती रोटी सेंक रही थी
पास ही बैठी लक्ष्मी बर्तन साफ कर रही थी। 
क्या हुआ माँ क्यों दुखी हो रही हो?
कुछ नहीं लाडो....
बताओ तो...
बेटी की पुचकार सुन लाजो का मन भर आया उसने बड़े धीमे से स्वर में बताया-" आज मालकिन के घर साफ सफाई कर रही थी साहब का कोई जरूरी कागज कचरे में डाल दी थी। सब ढूंढ रहे थे जब मैं बताई कचरे में कागज भी था तो मेरेसे निकलवाए और साहब बहुत गुस्सा कर रहे थे। बोले बिना पूछे कोई सामान मत फेका कर वो बता रहे थे। दस हजार का था वो...
लेकिन इतना महंगा दिख नहीं रह था...
क्या पता क्या था
वो भाभी के ऊपर भी बहुत गुस्सा कर रहे थे बोले -" लाजो के लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है तुम तो देखा करो" मेरे कारण भाभी को भी बहुत सुनना पड़ा।
बेटी भैया जो बोले उसका क्या मतलब है?
लक्ष्मी ने मुस्कुरा कर अपनी माँ को गले लगाते हुए कहा- इसका मतलब है अब हम दोनों रोज रात में बैठेंगे तुम स्वेटर बनाना सीखाना मैं तुम्हे पढ़ना लिखना सिखाऊंगी...
ठीक है....
अच्छा माँ फिर क्या किए कागज का?
 लक्ष्मी ने उत्सुकता से पूछा
उसने हंसते हुए कहा -"क्या करते मैं और भाभी पोछ, सुखा के आयरन मार के दे दिए....
एकदम बढ़िया हो गया"
चलो अच्छा हुआ और दोनों हंस पड़ीं
नीता झा

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