संविधान, नियम की बात कही क्या - नीता झा

संविधान,नियम की बात कही क्या
हम बंजारों की टोली में
खुद ही खुद को जी लेते हैं
खुद ही खुद के रक्षक हैं
कौन सी दौलत,कौन सा कायदा
हमे सुरक्षा दे पाया है
हर इक बन्दा मेलजोल कर
हमपे अधिकार जताता है
कहने को मिला सारा जहाँ मगर
हक कहीं न मजबूत हुआ
तब तक रहे महफ़ूज जगत में
जब तक लोगों ने हमको बक्शा
देवी उपासक भी अपने स्वार्थ में
अपनी ही बेटी को मार रहे
संविधान की बात कहें क्या
हम तो हर  सर्वस्व लगा भी
दोयम दर्जे में ही सिमट गए
जब तक लड़के का एक घर
और लड़की के दो घर होंगे
अनन्त काल तक नईहर,पीहर
उसे कभी न एक घर दे पाएंगे
           नीता झा

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