विरासतें..... नीता झा

विरासतें भी ख़ूब खेलती हैं 
खूनी होलियां....
मारती हैं ख्वाहिशें हासिल करते
ढेरों कंकड़, पत्थर....
शेष होती जिंदगी बनाने दीवार 
कभी न गिरती...
लाशों के ढेरों से बनती दीवार
चमचमाते संगेमरमर के गुम्बद
लपेटे खूनी पंजों के दंश...
वो जौहर की लपटों की कालिख
सिसकती जलियाँ की काली तारीख
काश विरासतें दे सकतीं कभी....
मुट्ठी भर बीज खुशियों के,
आंगन भर धूप गुनगुनी....
सोंधी खुशबू मटकी के दूध की..
वो सर्दी की गर्म मिठाई...
और बरसात में भीगते लम्हे।।

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