रेत से फिसलते रिश्ते
कितनी तनहाइयाँ दे जाते हैं
हर इक कण के गम में
मुझे और जिम्मेदार बना जाते हैं
मुट्ठी से कैसे भी समहलु
कण कण छन ते ही जाते हैं
मेरे अपने अग्रज जब
काल के गाल में समाते जाते हैं
मुझे अकेलापन और उदासी का
घाव ता उम्र सहने दे जाते हैं
अब टूट जाती हूँ जल्दी ही
जब सम्हालने को मुझे सदा
वो मजबूत कांधे नही मिल पाते हैं
जब थक कर सोना चाहूं नींद भर
आँचल के वो सूती कोने याद आते हैं
वो माँ के आँचल से आती मसाले की खुशबू
पिताजी का बेइंतहां भरोसे का खज़ाना
तोड़ देता है मुझे उनका न होना
उनके कर्तव्यों को सहेजते
बहुत से रिश्तों का बुजुर्ग हो जाना
मुझे भी कमजोर कर देता है
अपने बड़ों का कमजोर होना
नीता झा
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