आजकल कुछ बदली सी लगती हो
न हंसती दिल से तुम पहले सी
न वो जादुई मुस्कान अधर पर,
न वो अल्हड़,तुम मस्त कलन्दर
न मुझेमें गौर ही करती हो
आजकल तुम बदली सी लगती हो
मैं नही जो आ जाऊं बातों में तुम्हारी
मैं नही जो अनकही व्यथा न समझूँ
मैं मीत तुम्हारा सदा तुम्हारे पास ही हूँ 
जानता हूँ बचपन से हाव भाव तुम्हारे
तुम्हारी अनकही भी भांप लेता हूँ
इसी आशंका से पूछ रहा हूँ क्यों तुम
आजकल बदली बदली सी लगती हो
मैं मौन हूं ,तुम सा मुखर नही,
मैं स्थिर हूं तुम सा वाचाल नही 
फिर भी हमारा नाता रहा हमेशा
तुम न मुझसे मिल घर से निकलती
न मैं तुम्हे सँवारे कहीं जाने देता
पर अब न तुम मुझसे ही मिलती हो 
न कहीं जाने में ही रुचि रखती हो
कहाँ गया वो तुम्हारा मुझे निहारना
टकटकी लगाए घण्टों मुझे ताकना
फिर स्वछंद हंसी हंस कर हौले से
मुझे देख अपनी जुल्फें सुलझाना
मैं दर्पण में पड़ता प्रतिबिम्ब हूं तुम्हारा
तुमसे ही तो प्रदुर्भाव है मेरा
         नीता झा

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