दिवाली का आना क्या
और दिवाली का जाना क्या
घर की सफाई,गन्दगी की छटाई
और अभावों के अहसासों का क्या
कुछ तसल्ली मन मे के ठीक है,
सब अच्छा होगा आशा है
सामने झोपड़ी से टिमटिमाता दिया
पुराने कपड़ों में मनती दिवाली
दूसरों की आतिशबाजी में खुश होना उनका
याद दिलाता है उनसे तो ठीक है
पर नादान मन उदास होता है
सोने की मिठाइयों को देख कर
विचार आता है कहाँसे आया होगा सोना
कहीं किसी मजबूर का मंगलसूत्र तो नही
या किसी मजबूर का इकलौता जेवर तो नही
या किसी मासूम को लूटा हुआ गहन तो नही
कुछ भी हो मुझे इससे सरोकार नही होना चाहिए
जिस गली जा नही सकती कभी उसका पता पूछ क्या
और पता लगा कर करना क्या
नीता झा
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