कर रही मरम्मत आजकल - नीता झा
दो अनजान लोगों का विवाह के बंधन में बंध जाना वो भी उनके अपनो द्वारा रिश्ते जोड़ना हमारी भारतीय परंपरा है। हमारे यहां शादी बड़ा ही पवित्र बंधन होता है। जिसे दोनों बड़ी अच्छी तरह निभाते हैं।
एक समय ऐसा भी आता है जब हम अपने साथी के साथ रहने के इतने आदि हो चुके होते हैं कि उनकी उपस्थिति का अहसास नहीं होता न एक दूसरे के बिना रह पाते हैं और न एक दूसरे के लिए अलग से समय ही निकाल पाते हैं ऐसे में रिश्तों की मिठास कम होने लगती है। समय रहते इस सुनेपन को एक दूसरे के सामीप्य से न सँवारा जाए तो दूरियां बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता इसलिए अपने दाम्पत्य जीवन मे सरलता बनाए रखना पति - पत्नी दोनों का दायित्व बनता है। इन्ही भावनाओं को समर्पित मेरी रचना " कर रही मरम्मत आज कल" है.....
कर रही मरम्मत आजकल।।
दिवाली की तरह....
कर रही सफाई आजकल।।
हमारे प्यार की....
पुरानी सी हो चली इमारत।।
नए सिरे से फिर....
सँवार रही हूं आजकल।।
उबाऊ हुई बहुत....
कुछ चटख रंग रिश्तों में
सजा रही हूं आजकल।।
मन के मैल सारे....
साफ कर रही हूं आजकल।।
सूखे, मुरझाए, सड़ते, गलते
फ्रिज के बेकार सामानों से।।
रिश्तों के अवसादों को...
बाहर कर रही हूं आजकल।।
सूखने सी लगी तुलसी
प्यारी मन आँगन की।।
अनचाहे उगे खरपतवार...
उखाड़ फेंक रही हूं आजकल।।
कुछ दाने चलो रखें हम
सुवासित फूलों से लम्हों के।।
उतरेगी खुशियां....
हमारे भी मन आंगन।।
अवसादों की टीस न,
तन्हाइयों की पीर होगी।।
तुम कुछ नए नए से हो जाओ..
मैं कुछ नई नवेली सी हो जाऊं।।
आओ मीत हम फिर एक हो..
रूठी खुशियों को फिर मनाएं।।
नीता झा
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