चल फिर झूठ बोलते हैं - नीता झा
चल फिर झूठ बोलते हैं
अपने अपनो को खुश करते हैं
वफाओं के किस्से गढ़ते हैं
चल फिर झूठ बोलते हैं
अपने छलकते आंसुओं को
कोई प्याज,हंसी जैसा नाम देते हैं
और रुंधे गले की घुटती आवाज़ को
नेटवर्क फेलियर का नाम देते हैं
चल फिर झूठ बोलते हैं
इतनी दूर हूं सबसे फिर भी
मेरी मायूसी में उनके अचानक
याद कर भावुक होने की उलझन को
किसी मनगढ़ंत उपलब्धी बता
उनकी चिंता को बदलते हैं
चल फिर झूठ बोलते हैं
उन दो जोड़ी आंखों के
अनकहे सवालों पर धीरे से
भरम का चश्मा चढ़ाते हैं
ऐ दिल अकेले में रो लें चल जी भर
फिर अपने शुभचिंतकों को
बड़े प्यार से गुदगुदाते हैं
चल फिर झूठ बोलते हैं
नीता झा
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