कौड़ी - कौड़ी जोड़ने किए अनन्त उपाय – नीता झा

 

कौड़ी - कौड़ी जोड़ने...
किए अनन्त उपाय।।
जीवन झीना हो रहा...
सेहत दिए भुलाए।।
अपनी काया साथ चले...
सांसें जब तक होए।।
 फिर काहे तू इनसे विमुख...
खुद को दिए विसराए।।
आंधी- अंधड़ विपदा जीवन...
योग पांव जमाए।।
कोई विपदा ना हरा सके...
 तन में शक्ति होए।।
 उठें सबेरे सूरज से पहले...
 तन मन खुशियां पाए।।
 मन प्रफुल्लित, शरीर स्वस्थ...
 जीवन सफल कहलाए।।
 खान पान में नियम बरतें...
सुपाच्य औषधि होय।।
 देंह तंदुरुस्त होवे इससे...
 रोग भागते जाएं।।

मन चंचल हर समय कुछ न कुछ विचारों में उलझ रहता है। जीवन को सुखमय बनाना चाहते हैं तो इन्हें संयमित, संतुलित करना अत्यंत आवश्यक होता है। 
     कुछ नियम खुद के लिए भी बना के रखें हमे बचपन से घर मे भी बाहर भी अच्छी बातें सिखाई जाती हैं। सभी अपनो की कोशिश होती है हम अच्छे बने सभी के सतत प्रयासों बचपन से की हुई मेहनत, लगन के बाद ऐसा क्या होता है कि हम वो नहीं बन पाते जो बन सकते थे?
     आपने यदि गौर किया होगा तो देखेंगे नन्हे बच्चे की शारीरिक संरचना बड़ी नाज़ुक, कोमल होती है। जैसे जैसे उनकी आयु बढ़ती जाती है वे तंदुरुस्त होते जाते हैं। 
     उचित लालन - पालन, योग,प्राणायाम, ध्यान खेल - कूद, व्यायाम इत्यादि विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से वे देश और दुनियां में कुछ अच्छा करते हैं। यही तो मनुष्य धर्म की प्राथमिकता होती है।
      किंतु हर किसीको मौसम, काल, परिस्थिति के अनुसार कोई न कोई व्यधि या परेशानी होती ही रहती है। जैसे ठंड में हाथ, पैर फटते हैं; गर्मियों में घमौरियां हो जाती हैं ऐसे ही गरिष्ठ भोजन से पेट मे तकलीफ होती है आदि - इत्यादि....इसे हम किसी न किसी तरह से ठीक कर लेते हैं। ठीक ऐसे ही तन के साथ साथ हमारे मन मस्तिष्क पर भी विभिन्न परिस्थितियों के लगातार प्रभाव पड़ते रहते हैं। बचपन मे अभिभावकों को इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए उनके समुचित विकास पर यथासंभव ध्यान रखें किन्तु उसे परिस्थितियों से हमेशा बचाते ही न रहें कभी कभी उन्हें परेशानियों का हल निकालने भी दें आप ये कर सकते हैं कि उनपर नजर रखे जब भी लगे उसे आपकी जरूरत है आप हैं। उसे जिस भी क्षेत्र में आगे ले जाना चाहते हैं। यथासंभव उसकी मदद करें साथ ही उसे पता होना चाहिए आपकी अपनी कितनी क्षमता है। और हमेशा अपने बच्चे की क्षमता का भी आपको अंदाजा रहना चाहिए उससे जरूरत से ज्यादा की उम्मीद भी न करें।
     जिस तरह आप सीमित समय के लिए इस दुनियां में आए हैं वैसे ही वे भी निश्चित समय मे इस दुनियां में रहकर दुनियां को कुछ बेहतर करने आए हैं वे भी बच्चे के अतिरिक्त एक समूचा व्यक्तित्व हैं उनकी भावनाओं का भी उतना ही महत्व होना चाहिए जितना बड़ों का।
     उन्हें जिम्मेदार बनाइये लेकिन पहले एक नेकदिली, स्वस्थ इंसान बनाइये। जिसे आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्यगत सभी क्षेत्रों में संतुलन बनाना आता हो। वो कभी दुखी नहीं होगा। अपने साथ - साथ औरों के लिए महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बनेगा......

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