वो चन्द लकीरें 
मेरी तन्हाइयों की
तुम तक पहुंची कैसे
फर्क नहीं पर यारा
तुमने उन्हें न पहचाना
वाहवाही नहीं तुमसे
चाही सादगी भरी सहमति
साथ घूमने की,सुख दुख 
मिलकर साझा करने की,
साथ खिलखिलाने की,
गुनगुनाने की ओर
एकसाथ जी भरकर रोने की
यही तो प्यार है
हां यही प्यार है
जब ये होता है
तनहाइयाँ नही होतीं
रिश्तों की रुसवाईयाँ 
भी नही होतीं 
   नीता झा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

निपूर्ण योग संस्थान रायपुर छत्तीसगढ में योग दिवस - नीता झा

योग के लिए खुद को तैयार कैसे किया जाए - नीता झा

निपूर्ण योग केंद्र