दर्द को किसने मेरा पता दिया
मैं उसके लिए जीती रही और वो
मेरी ही कब्र खोदता रहा
किससे कहूं और क्या ही कहूँ
मेरा गुरुर ही मुझे छलता रहा
मांग में क्या सिंदूर मेरी सजी
वो जागीर मुझे समझ बैठा
वो कांधे अब पास नही मेरे
जो ग़मो के बोझ उठाते मेरे
वो आँचल का कोना भी साथ नही
जो समेट लेता सारे ग़म मेरे
नीता झा
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