तुम्हारी याद बहुत रुलाती है
तुम पास नही यही जताती है
मैं रो लूँ तो खुश हो जाती है
तुम्हारी याद बहुत रुलाती है
तुम मेरी आदत थीं
तुम मेरी इबादत थीं
पता था न तुमको
मैं तुम बिन कुछ नही
फिर क्यों चली गईं
मैं महसूस कर पाती हूँ
तुम्हे ,तुम्हारी हर बात
तुम्हारा मुझे गोद मे उठाना
प्यार करना,
सबसे बेहतर बनाना
बन गई लो सबसे बेहतर
इतनी की खुदको मिटा भी
हंसती, मुस्कुराती हूं
अपने ग़म भूल
उन्हें हंसाती हूं
और अपना सब कुछ
खत्म कर भी
जीने के कुछ भी
बहाने गढ़ती हूं
भीड़ में भी कोई
कैसे अकेला होता है,
समंदर में घोंघा कैसे
प्यासा रहता है
अब इन बातों को
जीने लगी हूं
अम्मा मैं तुम्हारे बिना
बहुत अकेली हो गई हूं
तुम्हे पता है ना
मैं कह नही पाती
दुख अपने अन्तस् मन के
तुम्हारे बाद मैं
किसी को दुखी नही लगी
कुछ ने पहचाना ही नही मुझे
कुछ से दर्द छिपाती ही रही
पर अब दो रास्तों पे
उलझ गई हूं
या सारे अवसाद छोड़
खत्म हो जाऊं
या जूझ जाऊं
सारे अवसादों से और
अपना एक
स्वतंत्र अस्तित्व बनाऊं
नीता झा
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