संध्यासुन्दरी का हुआ आगमन नीता झा
प्रकृति किए नीलम श्रंगार।।
सावन की पालकी में उतरी...
संग चली बूंदों की झनकार।।
चली हवा संग लिए जीवनी...
पोषित करने सारा संसार।।
बसे झीने नीलाभ दामन में...
जीवन के हैंअवसर अपार।।
नील गगन भी हर्षित-मुदित...
आया मधुरम कौमुदी त्योहार।।
श्यामसुंदरी आई ओढ़ चुनरी...
रंग महल सा लगे सारा संसार।।
खारा समंदर भी लगे मुस्कुराता...
जब हुआ आगमन खुशियों का।।
कण-कण आल्हादित झूम उठा...
जब आई सावन की मीठी बौछार ।।
नीता झा
उत्तम लयात्मक
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