वसंतपंचमी की शुभकामनाएं - नीता झा।

वासन्तिक आभा में दमकता...

माँ भारती का रूप अद्वितीय।।

मानो ऋतुओं के संधिकाल में ...

सतरंगी चुनर ओढ़े  विचारती।।

वीणा के रस कानो में घोलती...

विद्या देवी चली आरही हौले।।

हमको देने ज्ञान की थाती....

हों आप सभी विद्वता से पूर्ण।।

जीवन जैसे हो पर्याय सद्गुण...

शुभकामनाएं वसंत पंचमी की।।

  ऋतुओं के संधिकाल में जब वर्ष बदलने आतुर चोला...
  भक्ति भाव से करलें विद्या मां का हम पूजन...
  खेतों की रंगोली मोहक बदल रही प्रतिदिन रंग, रूप, गुण अनेक....
   मद्धम हवा भी हो रही थोड़ी चंचल बीजों का करने विकिरण...
    सधी हुई शिल्पी मां प्रकृति गढ़ रही हर मौसम की जादूगरी...
    माँ भगवती दे रही है हम सबको अपनी आशीष....
 अब तपने की तैयारी में निकले सूर्य देव प्रातः शीघ्र...
 बदल - बदल कुछ भोज्य पकाएं बहुतेरे कच्चे का अब करें जो सेवन....
 खुली हवा में करते जो योग मिले खुशियां अद्भुत अनमोल....
             नीता झा

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