क दस्तावेज भविष्य के नाम
    आप सभी को सादर अभिवादन करते हुए अपने मन मे उठे विचार व्यक्त करना चाहती हूं। आशा है आपलोगों की प्रतिक्रिया मिलेगी।
     सत्तर, अस्सी के दशक में अभी की तरह सशक्त संचार माध्यमों का अभाव सा था।
   कभी कभी आवश्यकता बड़े सुदृढ नियम बना लेती है। हमे पता भी नहीं चलता ऐसी ही एक परंपरा सी थी। इलाहाबाद जाना मतलब काली मछली का झंडा गोपाल पंडा जी के पास जरूरजाते थे और  सभी नए बच्चों के नाम वंशवृक्ष में अंकित करवाते थे यह बड़ा महत्वपूर्ण काम होता था। जो आज भी बदस्तूर चला आ रहा है। हमे हमारी जड़ों से जोड़ती व्यवस्था है ये।
   
    मैने अपने किशोरावस्था में पहली बार उस वक्त इस विषय पर ध्यान दिया जब हमारे रिश्ते में कहीं शोक हुआ था। हमेशा की तरह तब भी कुछ बच्चों के नाम गए थे। हमारे घर से भी भतीजे का नाम लिखवाया गया था। वह उम्र में मुझसे बहुत छोटा नहीं है। जाहिर है हम बुआ भतीजे से ज्यादा भाई बहन की तरह रहते थे।
    खैर वंशवृक्ष बनकर आई पिताजी के साथ सबलोग बैठ गए अपना अपना नाम देखने चार भाइयों की अकेली बहन यानी हमारे घर मे स्त्रियों की संख्या कम थी मैं, भाभी और अम्मा जब सब अपना नाम देख कर खुश हो रहे थे। तब मेरे बाल मन मे सवाल उठा इसमे मेरा नाम क्यों नहीं है?
    जवाब मिला लड़कियों का नाम नहीं होता...
    फिर भाभी और अम्मा का नाम क्यों नहीं है?
    जवाब वही महिलाओं का नाम नहीं होता...
    अब कोई सवाल नहीं है। बस एक ख्वाहिश है। जब कोई कन्या रत्न जन्म ले तो उसे भी विशाल वृक्ष की एक टहनी में अपना नाम दिखे और जब वह विवाह के बाद ससुराल जाए तो अपने पति बच्चों के साथ दर्शाई जाए यह तो हुई वंशवृक्ष की बात एक दूसरा पहलू भी है। 
    कुछ समय से मैन अपने मैथिल ब्राम्हण महिलाओं व पुरुषों के स्वतंत्रता संग्राम में अथवा स्वतंत्रता के पहले व बाद में लगातार किये गए उल्लेखनीय कार्यों की जानकारी चाही तो महान लोगों के कृतित्व का न के बराबर ही उल्लेख मिला तो लगा हमने तो अपने बुजुर्गों से किस्से सुने पर किस्से इतिहास में दर्ज नहीं तो क्यों न हम सब मिलकर अपने अपनो की व स्वंय की उपलब्धियों से अपनी भावी पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त करें।
    महिलाओं के इतनी सदियों के उल्लेखनीय कार्यों का कोई खास तथ्य नहीं मिलता कुछ पीढ़ियों तक किस्से में रहने के बाद विस्मृत सी होने लगी हैं। जबकि पुरुषों के कृतित्व के कुछ - कुछ उल्लेख इतिहास में दर्ज है। कहीं कहीं तो शिलालेख में भी शोभायमान हैं जिससे हम आज भी अपने पूर्वजों को लेकर गौरान्वित होते हैं। किन्तु यह पर्याप्त नहीं है।  किस्से धीरे धीरे अपनी रचना बदल लेते हैं किन्तु लिखित बातें सदैव वैसी की वैसी बनी रहती हैं। 
    ऐसा भी नहीं है कि हमारे समाज मे महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं हमारे यहां तो वास्तव में स्त्रियों को बहुत प्रेम और आदर से परवरिश दी जाती है। यही वजह है कि हमारे समाज मे सर्वगुणसम्पन्न महिलाओं की विशिष्टता का उल्लेख हर जगह होता है फिर वो परतंत्र भारत की जुगमती बाई डंगनिया हों अथवा वर्तमान समय की हर बड़े संस्थान की वरिष्ठ महिलाएं हों। 
    जब सभी समृद्ध, प्रबुद्ध सितारे हमारे समाज को जगमगा रहे हैं तो क्यों न सबको विधिवत संकलित करके पुस्तक के रूप में सुरक्षित करके आनेवाली पीढ़ियों को सभी की प्रतिभा से परिचित कराएं। 
    तो आइए हम सभी लोग अपने व अपने अपनो के विषय में बताएं और अपने ओज से समाज को और भी आलोकित करें।
    धन्यवाद
    नीता झा

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