मैं और मेरी मजबूरियां - नीता झा
लहरों सी अनगिनत मजबूरियां
अनवरत बहाने को आतुर बढ़ती
मेरे वजूद को छलनी करती
मुझसे सैकड़ों समझौते कराती
और मैं पानी को थामती ,सम्हालती
नन्ही शैवाल सी डोल रही हूं
अपने आपको लहरों से भिड़ाती,
लड़खड़ाती ,बलखाती
किसी तरह जमी हुई हूं
नीता झा
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