वो एक लड़की - नीता झा

वो एक लड़की ही तो थी..

तो क्या ज्यादा नहीं पढ़ी!!

वो एक लड़की ही तो थी..

क्या हुआ जल्दी व्याही गई!!

और भेजी गई दूर गांव..

सब सिखाया है सहना!!

मुह से उफ भी न करना..

सुबह उठकर नहा कर!!

पूजा फिर चौका करना..

सबके पसन्द की थाली!!

सबको दूध में दे मलाई..

सारा समेट सोने जाना!!

उन्हें ही अपना  सर्वस्व कहना..

जो वो कहें वही करना!!

किया भी उनका कहा..

सर झुकाए सहती रही!!

बरसों बरस जीती रही..

मर्तबान की मछली बन!!

पर उस दिन चीख पड़ी..

अपनी बात मनवा ही ली!!

जब उसकी नन्ही लड़की..

पसन्द कर ली गई व्याहने!!

नहीं मानी अपनी मनवाई..

विदा तो किया पेटी दे कर!!

पर ससुराल नहीं भेजा उसे..

छोड़ आई डसती नज़रों से दूर!!

उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज..

वो सबल नारी बन बढ़ेगी!!

अपने साथ स्वयं न्याय करेगी..

अपनी परिभाषा स्वयं गढ़ेगी!!

नीता झा

टिप्पणियाँ

  1. एक ही कविता में खूब सारे संदेश I अच्छी कविता

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  2. क्या बात है नीता,, तुम जा भी लिखती हो वह मात्र कहानी कविता नहीं लगती,, जीवन्त यथार्थ लगता है,, सच है मां बाप जिस अभाव से गुज़रे हैं चाहे शिक्षा हो या सुविधा अ५ने बच्चे को देना चाहते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. आप के लेखन की कला का कोई जबाब नहीं है दी 🙏।सत्य के साथ सादगी और सरलता के साथ भावाभिव्यक्ति करने का अद्भुत अंदाज ।।👍👍👍👌--आप का ह्रदय से नमन ,वन्दन ।।

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  4. बहुत खूबसूरत कविता 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻☺️☺️

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