सुनहरी भोर - नीता झा



शांत चित्त कर जीवन जीने की...

फिर आई देखो सुनहरी भोर।।

जीवन पथ पर बढ़ चलने को...

फिर आई देखो ऊर्जित भोर।।

हलधर के बैलों की घण्टी से...

फिर आई रुनझुन करती भोर।।

नानी से बची कहानी सुनने की...

फिर आई उत्सुक सी भोर।।

बर्तनों संग खनकती चूड़ियों से...

फिर आई रसोई बनाती भोर।।

दादा संग लंबे डग भरती पोती से...

फिर आई फुदकती, सी भोर।।

आकाश गंगा को मुह चिढ़ाती सी..
.
फिर आई रश्मियों की भोर।।

रात जगते चौकस सैनिक को...

फिर मीठी नींद सुलाती भोर।।

प्रकृति के सारे रंगों को निहारती...

फिर आई महादेव सी भोर।।

नीता झा

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