क्या चाहते तुम - नीता झा।
अपने मन पर झाँको तो कभी।।
जीवन की खुशियां साझा कर..
जो हर्षाते तुम्हारी मुस्कान पर।।
तोड़ रहे तुम चोट देकर भारी..
उनकी कोमल भावनाएं सारी।।
जिन्होंने त्यागी तुमपे जवानी..
क्या जान नहीं उनकी प्यारी।।
करके सेवा पा लो सच्चे सुख..
जैसे गो माता की सेवा कर।
दुग्ध पीने पौष्टिक, सुस्वादु..
पर ये कैसी चाहत कहो तुम।।
जब - तब तुम कील चुभोते..
पीते जाते बदन का रिसता खून।।
क्या इतनी भी शरम शेष रही ना..
देख सको उनकी वय और व्याधि।।
कैसे तुम्हे प्यार कर सीने से लगाएं..
जब तुम्हे जरा भी इनसे मोह नहीं।।
माता - पिता के साथ बच्चों का रिश्ता सदा से ही सबसे अधिक आत्मिय होता है। वो अपना सारा जीवन उनकी देख भाल, पढ़ाई, स्वास्थ्य, खुशियों और तमाम उम्दा परवरिश के लिए लगाते हैं, और बच्चे बदले में उनसे सच्ची श्रध्दा रखते हैं। ठीक भगवान और भक्त की तरह.....
ये होना भी चाहिए। याद रखें आपके माता पिता पालनहार होने के साथ - साथ सामान्य इंसान भी हैं। जो धीरे - धीरे अशक्त होने लगे हैं। उन्हें भगवान की भावना से पूजना उनके उम्र की उन सीमित साँसों के त्याग, बलिदान के आदर के साथ ही उन्हें शारीरिक, मानसिक सम्बल का भाव रख उन तमाम कार्यों का सम्मान भाव होना चाहिए यह हर बच्चे का कर्तव्य है जो उन्होंने आपके लिए खुशी खुशी समर्पित कर दिया उस त्याग का आपसे बिना पूछे, आपके बिना कहे।
कभी अपने दिल पर हाथ रख कर पूछो बढ़ती उम्र के साथ तेजी से मौत की दहलीज की तरफ बढ़ते उन्होंने खुद को कितना समय दिया?
कितना दे सकते थे?
कितने सपनो की भस्म दिल पर लगाई होगी तब कहीं तुम बड़े हुए और ये क्या? तुम कब इतने बड़े हो गए कि उन्हें ही लगातार जब जी मे आया जलील करते रहे । जिन्होंने सबसे ज्यादा तुम्हे प्यार किया उन्हें ही तुम लगातार रुलाते रहे....
काश माता पिता के जीते जी तुम उनकी कदर कर पाते। मरने के बाद तो दुश्मन के लिए भी लोग सदभावना दिखाते हैं। फिर तुम्हे तो उनकी छोड़ी सारी जायदाद मिलेगी उनकी मौत के बाद कोई फर्क नहीं पड़ता तुमने क्या किया क्या नहीं। गाय, कौवा अच्छे से खाए या नहीं फर्क तब पड़ता है जब जीवित माता - पिता ने खाना खाया या नहीं....
पूछ भी लो कभी ये देख लो उनकी दवाएं हैं या नहीं, उनके कपड़े, गहने, जरूरत के समान उनके पास हैं या नहीं.... जबसे तुम पैदा हुए हो वो तुम्हारी जरूरतों के लिए सजग रहे हैं। क्या तुम कभी उनके बिना कहे उनके लिए ख़रीदारी किये हो। क्या कभी उन्हें अचानक कोई खुशनुमा माहौल दिए हो।
तुम कहोगे वो लोग ये बातें नहीं समझते, उन्हें ये सब समझ नहीं आता तो कभी इत्मीनान से उनकी तमाम ज़िन्दगी भर की फोटो और वीडियो देख लेना। फिर अपने दिल से पूछना.... वो चुलबुले बच्चे, वो परिवार के बीच सबकी निगाहें में प्यार से बसते हुए किशोर, युवा अवस्था में कितने सपने सजाए विवाह बंधन में बंधे, फिर बच्चे के जन्म के बाद किस तरह अपना सारा प्यार और ध्यान बच्चों पर लगाए जीवन का सफर आगे बढ़ाया। कभी निष्पक्ष भाव से देखना उस विवाहित जोड़े ने कैसे जीवन बिताया। हर तस्वीर तुम्हे खुली किताब सी लगेगी बस हिम्मत रखना उन छोटी - छोटी तस्वीरों की आंखों के छलकते सपनो का सामना कर पाओ। इंसान की सारी भावनाएं उसकी आँखों मे दिखती है।
फिर वो चाहे बहुत पुरानी तस्वीर ही क्यों न हो। होंठ चाहे झूठी मुस्कान ओढ़ें पर तुम पाओगे आंखे झूठ नहीं बोल पातीं वो हर एक साल में मायूसी की तस्वीर बनने लगे हैं। उनकी सपनीली आंखें धीरे धीरे दर्द की झलक दिखाने लगी हैं। वो आंखे चमकती भी हैं....
परिवार के हर सम्मान पर, उपलब्धियों पर और अपने अपनो की खुशी पर....
वो परवाह किए जाने पर चमक उठती हैं....
इसलिए नहीं कि उन्हें तुम्हारी उपलब्धियों से अर्जित नाम और धन का लालच है। नहीं बल्कि तुम्हारी सुरक्षित ज़िन्दजी का सुकून उन्हें आनन्दित करता है। जब तुम कोई कपड़ा लेकर देते हो तो वो बार - बार उसे कैसे सहलाते हैं उसे ही बार - बार पहनते हैं,ये उनका लालच नहीं तुम्हारे प्रति उनका वात्सल्य भाव है। वो खुश होकर तुम्हारे लिए प्रार्थना करते हैं तुम और तरक्की करो।
ये वो हैं जो मौका पाने पर अपने बच्चे के लिए मौत से भी दो - दो हाथ कर लें वो जब समझाते हैं दुर्व्यसन न करो, अच्छी संगत रखो, सफलता को अपना मित्र बनाओ, खुश रहो इसके पीछे भाव तुम्हे परेशान करना नहीं तुम कैसे सोच सकते हो वो तुम्हारे दुश्मन हैं। जो तुम्हे गलत बातें नहीं सीखने देना चाहते वो कैसे तुम्हारे दुश्मन हो सकते हैं। उनकी सारी समझाइश और प्रयासों का सार सेहत की सुरक्षा का भाव निहित होता है। कभी सोचा है। नशे या अन्य दुर्व्यसन को हमेशा से बुरा क्यों कहा गया है ?
क्योंकि सिर्फ व्यापारी को इससे फायदा है बाकी तो सब को सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही है। एक और बात पर कभी ध्यान दिया कि जब भी किसी व्यक्ति को किडनी देने जैसी कोई बात होती है। माता पिता का नाम पहले आता है। जो बच्चा अपनी हरकतों से लगातार अपमानित करता रहे फिर भी चाहे किडनी ही क्यों न देनी पड़े वो लोग पीछे नहीं हटते कभी सोचा इसके पीछे उन बुजुर्गों का समर्पण.....
तुमकोअपने एक महीने की तनख्वाह लगानी पड़े तो सालों तक याद रखोगे और वो बिना अपने भविष्य और बुढ़ापे की चिंता किए अपने बच्चे के लिए इतना बड़ा त्याग करते हैं।
और ये कोई जताने या अहसान के लिए नहीं करते बस वो ताउम्र उस बच्चे को नहीं भूल पाते जो उनसे निर्मित है। उन्ही का अंश है। तो जब भी लगे भगवान या माता - पिता तुम्हारे दुश्मन हैं तो एक बार अपनी गिरेबान में जरूर ईमानदारी से झाँक लेना उनसे अच्छा प्यार हो जाएगा।
किन्तु वर्तमान समय मे मेरी सभी अभिभावकों को यही सलाह है। अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करें साथ ही साथ अपने बुढ़ापे की तैयारी पहले से ही करके रखें आपके बाद सारा कुछ उन्हें ही मिलना है लेकिन जीते जी अपनी सुरक्षा निधि किसी को भी देना कहीं आपकी सबसे बड़ी भूल न हो।
नीता झा
बहुत सही दिल को छूती कविताऔर अंतर्निहित भाव दीदी
जवाब देंहटाएंभावुक हो गयी 😔एक एक शब्द दिल को छू गया 🤔नि-शब्द 🙏🙏दीदी सच में बहुत ही अच्छी रचना 🙏🙏
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी लेख है दीदी आपके इस लेख में वास्तविकता के साथ मानव मन की भावनाएं भी ओतप्रोत हो रही हैं।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने 🙏🙏
हटाएं