सजन - नीता झा

माँ भारती की सेवा में सरहद जब फौजी जाते हैं....
देशभक्त परिजन उनमें तब कैसे शक्ति भरते हैं....
 जी हां वीर सिपाहियों की जबाज़ी के किस्से तो बहुत होते हैं। दुर्गम पहाड़ी, तपता रेगिस्तान या बर्फीली घाटी के अंधे मोड़, भीड़ भाड़ या जन शून्य इलाके हर हाल वे माँ भारती की सेवा निसदिन करते हैं। वो भी तो किसी माँ के लाडले लाल हैं....
 किसी पिता की बुढ़ी होती हड्डियों की जान हैं....
 किसी बहन की शान हैं....
 किसी सुहागन की पहचान हैं...
उन्हें भी अपने दोस्तों की महफ़िल की चाह है....
वो भी तो हमारी तरह हाड़ मांस के इंसान हैं....
फिर क्या है जो फौजियों को इतना विशिष्ट बनाता है....
आग उगलती गर्मी, बर्फ की मोटी चादर या बरसाती सैलाब हर हाल में अपने कर्तव्य निभाते हैं....
निश्चय ही कच्ची उम्र के बुने हुए ख्वाब और उम्र के साथ बलवती होती देशभक्ति की भावना और अपने संकल्प की ओर बढ़ते प्रयास यही सब तो है सैनिक की पहचान....
   ठीक इसी तरह एक नवयुवती जब किसी सैनिक की व्याहता होने का फैसला करती है। वो भी उन्ही ऊंचे आदर्शों की माटी से गूंथ कर बनी दृढ़निश्चयी, देशभक्त स्त्री होते हैं। मेरी यह कविता सभी सैनिकों की सुहागनों को समर्पित है जिन्होंने सैनिकों की गैरमौजूदगी में उनकी सारी जिम्मेदारियों को कर्तव्य समझकर सम्हाला साथ ही दूर कहीं विषम परिस्थिति में कर्तव्य निभाते अपने प्रियतम को वैवाहिक गठबन्धन की याद दिलाती है..…

दुर बहुत हो याद बहुत आते हो सजन...
तुम्हारा बस इतना कहना मैं ठीक हूं।।
हममें जीवनसंचार भर देता है सजन...
भीड़ में भी चाहे, कितना भी शोर हो।।
हर पल तुमसे यही सुनना है सजन...
पता था तुम कृतप्रतिज्ञ हो दूर रहोगे।।
भारत माता के सजग वीर प्रहरी हो...
हर हाल माँ भारती की रक्षा करोगे।।
गर्वित भाल हमारा तुमसे सदा होता...
मांगसिंदूरी चमकती गौरी की तरहा।।
माँ जब पूजा कर लगती हैं कुमकुम...
सज संवर जाती हूँ पा आशीष रोज।।
विश्वास अखण्ड सौभाग्य का ले कर...
शुभचरणवन्दन प्रातः जब करती हूं।।
तुम्हारी माँ के तब आश्वस्त होती हूँ...
बदली ऋतुओं में यूँ ही मगर गुमसुम
तुम्हारे आने के ख्वाबों में खो जाती हूं।।
जब तुम्हारी याद में आंखे भरीं सजन...
थामा झट मुझे अपने गले लगा कर।।
समेटती हैं  सारे आंसू आँचल में अपने...
फिर मुस्कुरा मेरा सारा दुख हरती हैं।।
सोती नहीं वो रात भर आंखे बताती है...
बन्द दरवाजे से सिसकियां आती है।।
जब रात गलियों में श्वान रुदन कहीं हो...
मंत्र जपती हम सभी को बांधती हैं वो।।
दुखों की बात भूले से कहती नहीं कभी...
बातें बना बना मुझको खुश रखती हैं वो।।
सासु माँ से सब कह सहज हो जाती हूं ...
मायके सब अच्छा कह खुश दिखती हूं।।
तुम बेखटके सारे कर्तव्य निभाओ सजन...
मैं देश की बेटी अपना धर्म निभा रही हूं।।
नीता झा

टिप्पणियाँ

  1. नि: शब्द!!
    सागर से भी गहरे,ये शब्दों के अनमोल मोती, शब्दों मेँ जादू। हृदय स्पर्शी रचना को दिल से प्रणाम।♥️🙏🙏

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