बारिश वाली शाम - नीता झा
जिसे देख मन में रोमांच जगा था।।
जीवनी शक्ति देती निर्मल प्राणवायु..
चारों ओर छाई हरियाली की चादर।।
उसपर जहां-तहां से निकलते झरने..
मानो प्रकृति के हीरे जड़े सुंदर गहने।।
सीटी बजाती नम हवा जब चलती..
लगता स्वर्ग की अप्सरा नाच रही।।
जी चाहता यहीं के होकर रह जाएं..
स्निग्ध हवा में फैली मोहक सुगन्ध।।
हमको अपने आगोश में भर रही..
बड़ा मनोरम दृश्य हमारे सामने था।।
और हम आए भी यही सब देखने..
मंत्रमुग्ध हो प्रकृति में खो गए थे।।
तभी लोग हरकत में आए झटपट..
बस्ती की ओर जाने लगे अचानक।।
हमे समझाइश दी साथ चलने कहा..
पर हम बातों पे ध्यान न दे डटे रहे।।
मौसम की सारी कलाबाजियां देख..
ढेरों फोटो, वीडियो लिए जा रहे थे।।
काली घटाएं अपने चरम पर छाई..
दिन में ही रात सी स्याही होने लगी।।
अब फाहे सी बारिश तेज़ हो गई..
मनोरम, सुंदर राहें दुर्गम होने लगीं।।
सारी घाटी अचानक डरावनी हुई..
पता ही नहीं चला हम कहां खड़े।।
भीगी नम हवा बर्फ से कम न थीं..
पांवों में भारी मजबूत जीवट जूते।।
कीचड़ को थाम लेने को आतुर थे..
एक पग बढ़ाना लगता कठिन था।।
तिसपर हाथ को हाथ न सूझे ऐसा..
अमावस का घनघोर छाया अंधेरा।।
आंखों का यहां कोई काम न था..
दुर दुर तक केवल स्याह अंधेरा था।।
खुली आंखों को बंद का धोखा था..
बारिश की बूंदों का बढ़ता कहर था।।
बिजली गर्जना से द्विगुणित शोर था..
बौछाई नागिन बन गिरती बिजली।।
मौत का भयंकर नृत्य दिखा रही हो..
लपट सी गिरती जब धरा पर मचल।।
दिल दहल जाता यह मंज़र देख कर..
हम चार दोस्त निकले थे देखने बाढ़।।
घाटी में कितना सुरम्य होता आसाढ़..
न सुनी चेतावनी मौसम विभाग की।।
चल पड़े सुनकर अपने चंचल मन की..
रखे सारे एहतियातन साजो सामान।।
सोच इससे सलामत हम सबकी जान..
यह तो केवल हमारा भरम मात्र था।।
जल्द ही हमपे ये भेद खुल गया था..
जब सुंदर टीला टापू सा बन गया था।।
तेजी से बढ़ता जल स्तर डरा रहा था..
जान बचाने हम यहां वहां भाग रहे थे।।
खुद को बचाते हम सब बिछड़ गए थे..
पुकारें हमारी कब चीख बन गई और।।
न जानेकब मेघगर्जना चीख निगल गई..
मैं बहुत जोर जोर से लगातार रोता रहा।।
अवचेतन में बसे सारे मंत्र जप रहा था..
कोई भी नहीं था बस सामने मौत थी।।
जिसे न देख सकता, न सुन सकता था..
बस बहुत ही पास महसूस कर रहा था।।
किसी तरह एक ठोस सतह महसूस हुई..
वहीं झाड़ी सी थी सहारा लेकर बैठ गया।।
बैग से रस्सी निकाल खुद को बांध लिया..
व्यवस्था होते ही मन वापस दुखी हो गया।।
फिर से मम्मी, पापा, दीदी याद आ रहे थे..
साथ ही वे सारे लोग जिन्हें मैं जानता था।।
सभी की दुआएं, बददुआएं याद आ रही..
बढ़ता जलस्तर मुझे लीलने आमादा था।।
मैं डरा, लाचार अंतिम घड़ियां गीन रहा था..
सारे लोगों से मन ही मन संवाद कर रहा था।।
बधाई, माफी, संवेदना सबो में भेज रहा था..
भूख, थकान से बेहाल बेसुध हुआ पता नहीं।।
जब आंख खुली सारा मंज़र बदल गया था..
घने काले बादल बरसने को आतुर लगते थे।।
मैने रात के अंधेरे में जिस डाल से बांधा था..
अब बारिश होते ही कभी भी डूब सकता था।।
क्या करता कोई रास्ता न था मुझे याद आया..
कल शाम मैं सबसे ऊपर टिले पर चढ़ा हुआ।।
चारों तरफ की तस्वीरें कैमरे में कैद करता रहा..
मैं बड़ी जोर से घबरा गया जहाँ बमुश्किल चढ़ा।।
अब इस हाल में दो कदम चलना नामुमकिन है..
फिर हल्की हल्की बारिश शुरू होने लगी थी।।
खुद से वादा किया अंत तक कोशिश करूंगा..
पत्थर के नुकीले कोने में खुद को बांध लिया।।
कई घण्टे बीत गए मौसम कुछ खुलने लगा..
तभी हेलिकॉप्टर मेरी तरफ बढ़ा जल्द ही।।
डरावने मंज़र से बाहर निकला लिया गया..
सैलाब में बह गए मेरे बचपन के प्यारे दोस्त।।
बह गई सामानों संग उनके साथ ली तस्वीरें..
जिन खूबसूरत वादियों में कल हम आए थे।।
वहां बस दूर दुर तक पानी ही पानी भरा था..
मुझमें भी वह बारिश जम गई हमेशा के लिए।।
विकरालता के साथ मेरे दोस्तों को डुबाती..
मुझसे मेरी सारी खुशियां लेकर बहुत गहरे।।
मन के भंवर में दोस्तों को निगलती उगलती..
हर दिन मन मे वैसी ही बारिश वाली शाम थी।।
नीता झा
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