पता नहीं चला कितनी बार जलीं उंगलियां..
याद नहीं कितने फफोले उठे रोटियों संग।।
उफनती चाय और छानते पकौड़े में उठते..
गर्म तेल के बिखतरे नर्म हाथ जलाते छींटे।।
ये भी तो याद नहीं कितनी दवाइयां मिलीं..
प्यार भरी उनकी मीठी झिड़कियों के संग ।।
फिर चुपचाप बिठा लगाते प्यार से मलहम..
सम्हाल भी तो लेते हैं सारे बिगड़े मेरे काज।।
मायके के वात्सल्यमई संसार से विदा हो ..
वैसी सी प्यार भरे उनके संसार मे बस गई।।
अपनत्व से अधिकार जताती नजदीकियां..
सभी लोगों की हमे ले की जाने वाली फिक्र
वैसी ही भरोसे वाली सदा मान बढ़ाने वाली..
पता ही नहीं चला कब उनमें घुल मिल गई।।
कब हमारी सोच बिल्कुल एक सी हो गई..
उनकी देंह झुलसाती गर्मी की तपस्या और।।
मेरी घर भीतर की तमाम छोटी बड़ी समस्या..
दूध चीनी मय हो संवार गई संसार हमारा।।
पता ही नहीं चला हमारा प्यार भरा जीवन..
सपनो की बगिया से सुंदर उपवन बन गया।।
पता ही नहीं चला कब कैसे समय बीत गया..
पता ही नहीं चला कब कैसे समय बीत जिस।।
नीता झा

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