योग अर्थात जीवन और आनन्द का सुयोग - नीता झा।

योगाभ्यास तथा प्राणायाम में श्वसन क्रिया का अत्यधिक महत्व होता है।
 नियंत्रित तथा लयात्मक तरीके सांस लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं।
साँसों को बाहर की तरफ छोड़ने को रेचक कहते हैं।
साँसों को अंदर रोकने को आंतरिक कुम्भक कहते हैं।
सांसों को बाहर ही रोक कर रखने को बाह्य कुम्भक कहते हैं।
नाड़ी शोधन प्राणायाम नाम से ही पता चलता है कि इसके अभ्यास से हमारे शरीर की सम्पूर्ण बहत्तर हजार नाड़ियों पर प्रभाव पड़ता है। उचित विधि से किये गए प्राणायाम से छोटी से लेकर बड़ी सभी नाड़ियां दोषरहित होती हैं।
 प्राणायाम में दाईं नासिका छिद्र से सांस बाहर निकालें फिर प्राणायाम शुरू करें-
1 -  पांच गिनते तक दांयी नासिक छिद्र से सांस लें
इसे पूरक कहते हैं
2 - दस गिनते तक दोनों नासिका छिद्र बन्द करके सांसों को रोक कर रखें
इसे आंतरिक या अंतर कुम्भक कहते हैं
3 - दस गिनते तक बांई नासिका छिद्र से सांसों को बाहर करें
इसे रेचक कहते हैं
4 - पूरी सांस बाहर होने पर दस गिनते तक दोनों नासिका छिद्र बन्द कर ऐसे ही रहे
इसे बाह्य कुम्भक कहते हैं।
5 - बांई नासिका छिद्र से पुनः पांच गिनते तक पूरक करें फिर दस तक अंतर कुम्भक, दस तक रेचक तथा दस तक बाह्य कुम्भक
इस तरह नाड़ी शोधन प्राणायाम का एक चक्र पूरा होगा ऐसे ही शुरू में पांच बार करें धीरे धीरे साँसों में समय बढ़ाएं तथा चक्र भी बढ़ाएं किन्तु यह यथा शक्ति करें और प्रशिक्षक की देखरेख में करें।
कुछ सावधानियां 
1 - साफ हवादार जगह पर प्राणायाम करना चाहिए
2 - जिस जगह बैठकर प्राणायाम कर रहे हो वह जगह समतल हो
3 - आसन सुविधाजनक हो
4 - मौसम तथा शारीरिक क्षमता के अनुरूप प्राणायाम करें
5 - कोई व्यधि अथवा ऑपरेशन, चोट इत्यादि हो तो बिना डॉ की सलाह के प्राणायाम न करें
6 - आप सादेव यह याद रखे आप आसन, योग, प्राणायाम, ध्यान जो भी कर रहे हैं वह स्वास्थ्य लाभ के लिए है अतः खुशी खुशी करें खुद का व अन्य लोगों की खुशियों का ध्यान रखते हुए करें
7 - अपनी क्षमता का स्वंय ध्यान रखें दूसरों से प्रतिस्पर्धा न करें सबके शरीर की बनावट, आयु तथा क्षमता अलग अलग हो सकती है।
8 - बहुत जोर से व जल्दी जल्दी श्वास - प्रश्वांस न करें ।
9 - यदि थकान या कोई असामान्य बात लगे तो रुक जाए 
10 - प्राणायाम से पहले यम, नियम, आसन को समझें भी जीवन में अमल भी करें प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, धारणा, ध्यान फिर समाधी योग का परम लक्ष्य है। इसे समझकर श्रद्धा भाव से अपनाना चाहिए। 
   योग हमारे पूर्वजों की कठिन साधना का अत्यंत व्यवस्थित रूप आज हमारे पास है इसका सम्मान करें और पूरी श्रद्धा से योग को अपने जीवन का अंग बनाएं। धीरे - धीरे सीखने की सतत प्रक्रिया ही आपको आनन्द की परिपूर्णता की ओर ले जाएगी।
धन्यवाद
नीता झा

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