नई कहानी गढ़ो अब तो
बात पुरानी बहुत हो गई
झूठी दया की बात बहुत
घड़ियाली आंसू बहुत हुए
कैसी लाचारी कहो जरा
और कैसी बेड़ी पांव पड़ी
न कोई कमजोरी तुम में
नहीं अबला समझ रखो
कड़वी बातें मगर ध्यान की
बेचारी अबला कभी न थीं
झूठे दर्पण में खुद को देख
तुम खुद को न समझ सकीं
धीरज बहुत है शस्त्र तुम्हारा
मेधा बुद्धि सदा अस्त्र तुम्हारा
दो घर पाकर भी ना जीती हो
हक पा भी ना समझ सकी हो
मान चाहिए, सम्मान चाहिए
हर सरहद पर विराम चाहिए
उठो बढ़ो और हाथ बढ़ा कर
झोली मेहनत से भर भी लो
बहुतों ने था तुम्हे सम्हाला
जीवन जीने लायक बनाया
अब उनपे न फिकरे कसो
खुद को पहले साबित करो
सम्मान भरा अधिकार और
उन्मुक्त गगन में परवाज़ भी
चलो अब मंज़िल की ओर
अपनी उड़ान पे ध्यान दो
नई कहानी गढ़ो अब तो
बात पुरानी बहुत हो गई
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