शून्य से होती यात्रा - नीता झा।

शून्य से होती यात्रा सुखद होती है..

पग - पग स्वयं की परख होती है।।

भान सदा कुछ हाथ सर पे मेरे हैं..

हर जीत उनकी मुस्कान होती है।।

इस लिए खुद को बनाया दरपन है..

मेरे वजूद में घर की लाज दिखती है।।

लोग शायद सीख लें हुनर मुझसे..

इस लिए उम्र सीखने में बिताई है।।

सांसों का क्या जाने कब थम जाए..

इस लिए अपनो में जान बसाई है।।

बहुत से लोग मेरे बाद जिएंगे मझको..

ऐसी कोशिश में जिंदगी बिताई है।।

नीता झा

रायपुर, छत्तीसगढ़

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