हमारी हिंदी - नीता झा।

माँ की लोरी सी मधुर...
जब हिंदी कंठ सजाती है।।
सात सुरों से सजी धजी...
पंचम सुर को भाती है।।
दिए जलाए पानी लाएं...
जब राग चरम पर होते हैं।।

विश्व शांति की संवाहक हो...
जो साहित्य मुखरित होते हैं।।
सकल जगत को शांत करें...
शक्ति का न कभी दम्भ भरें।।
शिशुओं सी सुकोमल हिंदी...
मन को सहज हर लेती है।।

किन्तु कभी जो आए विपत्ति...
विविध भाषाओं की जननी ये।।
सब मे सहज घुलमिल जाती है...
कालजयी रचनाएं गढ़ कर फिर।।
चहुं ओर विजय पताका फहरा...
युवाओं में देशभक्ति जगाती है।।

मातृभूमि की बेड़ियां काट जब...
विजय माँ भारती के भाल लगा।।
हिंदी की महिमा द्विगुणित हुई...
जब हिंदी की बिंदी माथ सजी।।
सारी वसुधा को गौरान्वित करती...
शान से खनकती हमारी हिंदी।।
नीता झा
रायपुर, छत्तीसगढ़

टिप्पणियाँ

  1. हिन्दी की महिमा पे बहुत अच्छी कविता 👌👌👌👌👌👌सबसे सुन्दर भाषा हिन्दी,
    ज्यों दुल्हन के माथे बिन्दी..🙏.

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