चांदी की पायल बंधे - नीता झा ।


चांदी की पायल बंधे..
मेरे वो कदम ही तो थे।।
बढ़ते रहे साथ तुम्हारे..
मेरा हौसला ही तो था।।
जो खिंची चली आई..
तुम्हारे सुंदर जीवन मे।।
निकल आई बहुत दूर..
लांघते अनेकों पड़ाव।।
संग तुम्हारे हंसीखुशी..
जानते हो नहीं आया।।
बाल मन वहीं जमा है..
सरिता की दलदली सी।।
तलहटी पर शैवाल संग..
आम की बड़ी डालियों में।।
गर्मी की नन्ही अमियों में..
धान के छोटे बड़े कूपे में।।
अधपके धान की गंध में..
जंगली फूलों की डाल में।।
हां वो मेरे कदम ही तो थे..
जो बढ़ते रहे साथ तुम्हारे।।
मैं हर्षाती हूं संग हो तुम्हारे..
बतियाती भी हूं बहुत और।।
इतराती भी हूं खुद से पर..
कुछ रीता सा है मुझमें भी।।
शायद जिद्दी मन का कोना..
मेरी पुकार किये है अनसुना।।
चिड़ियों संग फुदकता हुआ..
भँवरों संग गीत गाता हुआ।।
अट्टहास कर ये जतलाता के..
मेरे बिन वो बड़ा मस्त मगन।।
किए खुशियों के सभी जतन..
पर मद्धम हवा बता रही थी।।
प्रायःझरते हैं आंसू उसके भी..
अट्टहास करता है जी भर जब।।
रखता है मौसमी चादर में तब..
कुछ सूखे फूल कुछ उदास पल।।
फिर याद कर गर्मी की दोपहर..
सिसकता भी शांत हो घर जब।।
फिर वह भी सोता है उदास हो..
सरिता की तलहटी में दुबक कर।।
मुझे महसूस कर उदास होता है..
ओढ़ लेता है लंबी खामोश चादर।।
मौसमों की सीढ़ी चढ़ते देखता है..
एकटक इंतजार करता ही रहता।।
मन ये मेरा जिद किए है न मानने..
मुझे दूर जाते देख भी आस लिए।।
मैं आऊंगी कभी किसी बहार में..
गुनगुनाती, इठलाती प्यार बनकर।।
नीता झा

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