महिला दिवस की शुभकामनाएं - नीता झा ।

मैं ही तो थी जिसे लगया गया।
छठी में नजर का काला टीका।।
हाथों में मेहदी का सुंदर टीका।
रूप निखार तमाशा बनाया।।

मैं ही तो थी जिसे लगाया गया।
टेसू के मादक फूलों का सुंदर रंग।।
चन्दन फूल अबीर गुलाल के सँग।
फिर खेला गया मुझसे हो मलंग।।

मैं ही तो थी जिसे लगाया गया।
चटख लाल पारे का तेजस सिंदूर।।
पाँव सजाता औषधीय लाल माहुर।
शर्तों पर मिलता पोषण भरपूर।।

मैं ही तो थी जिसे लगाया गया।
कभी चन्दन कभी हल्दी नीम।।
अनगिनत सुगन्धित उबटन।
रूप निखारने के किये जतन।।

मैं ही तो थी जिसे बिठाया गया।
सदैव सभी अपनो ने पलकों पर।।
सुरक्षित रखा हीरे मोती की तरह।
धारण किया किसी जेवर की तरह।।

मैं ही तो थी जिसे चलाया गया।
सदमार्गी तप्त महीन कंकड़ों पर।।
मरहम लगा न रुकने के वादे पर।
कुल मर्यादा की गठरी पकड़ा कर।।

मैं ही तो थी जिसे चलाया गया।
बहुतेरे सवालों के कंटीले पथ पर।।
उम्मीदों की काई भरी डगर पर।
परखा जाता ढेरों कसौटियों पर।।

मैं ही तो थी जिसे चलाया गया।
मित्रता के नाम छद्म मार्ग पर।।
भ्रामक मोहपाश के जाल पर।
छला गया अमरप्रेम के नाम पर।।

मैं ही तो थी ठिठक ठिठक चलती।
अपने वजूद को आँचल से ढकती।।
कुत्सित भावना से खुद को बचाती।
प्रतिभा को दफन कर मातम मनाती।।

मैं ही तो थी  विजय तिलक लगाती।
अपने सपने तुम्हारी आँखों मे तलाश।।
भावशून्य तुममे स्वयं को पुकारती।
थक हार कर पराजित उदास होती।।

पर जानते हो अब कहीं कुछ बदल रहा है....

मैं ही तो हूँ तुम्हारी राधा सी सखी।
तुमसे जुड़ कर तुम्हे भी पूरा करती।।
तुममे समाहित तुम्हारी ऊर्जा बनती।
अपनी आमद से तुम्हे पूर्ण करती।।

हाँ मीत मैं ही तो हूँ दर्पण की तरह।
स्वयं में तुमको परिभाषित करती।।
तुम्हारा तुमसे ही परिचय करवाती।
तुम्हारे ओज से तुम्हे ही मिलाती।।


मैं ही तो हूँ तुम्हारे जीवन की गति।
तुम्हारे सर्वस्व को समृद्ध बनाती।।
तुम सजे गर्वित सदा मांग में मेरी।
मैं भी तो विजय तिलक तुम्हारी।।
महिला दिवस की सभी को बहुत बहुत बधाई 
नीता झा


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