संदेश

मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

याद हठीली - नीता झा

चित्र
दिल की गलियों में याद हठीली करती हैं डेरा हरदम डट कर न सोते चैन पड़े न जगते करार जीना - मरना लगे हरपल दुश्वार कितना मस्त होता था फागुन उसपर फबती सतरंगी बहार रंगों भरी जब भी आती होली वह लगती खुशियों की हमजोली रूप सलोना जब आया उसपर हुई पराई भेजी गई पिया के घर चटख रंग की सुनहरी चुनरिया जब सर पर रखती थी लावण्या राग रंग से श्रंगारित उसकी काया  पिया के दिल की बनी वो छाया  हंसते खेलते कब खत्म हुई छुट्टी  एकदिन सरहद से आ गया बुलवा  कह गए फागुन को आऊंगा सजनी  खूब खेलेंगे हम अपनी पहली होली  सखियों संग जमकर तैयारी करली  रंग गुलाल और पिचकारी भी ले ली  इक- इक दिन लगता बरसों लम्बा  दिन कटते न कटती उन बिन रैना  जैसे तैसे आ गई मिलन की घड़ी  पर यह क्या सबने उल्टी रीत चलाई  मायके की होली ससुराल में मनेगी  यह कह सब उसके ससुराल चले  बुलावा त्योहार का था पर यह क्या  उसे अच्छे से न सजने ही दिया था  पर चुपचाप संग में रख लाई थी   मिठाई और खुद का बनाया गुलाल   पीली साड़ीभी रख ली थी चुपके से   काका आए थे लिवान...

होली दिवाली साथ मन रही - नीता झा

चित्र
होली दिवाली साथ मन रही हर गली, चौक, चौराहों पर शातिर बैठे हैं आग लगाने  कुछ खूनी रंग हैं खेल रहे भीग रही कहीं कोई बाला अपने ही लहू से सराबोर कोई जलाई जा रही घर में कोई  जल रही बीच बाजार दिवाली की मिठाई सी पहुंची सजा-धजा बड़े बड़े दरबारों में फिर परोसी जा रही हर एक में जैसे त्योहारी पकवानों की बहार पानी दार सब मौन भीष्म हो गए शकुनि चलते चालाकी के चाल भाई-भाई से लड़ मिटे और लोभी उड़ाते माल अपार नीता झा

हम नवयुगी महिलाएं हैं - नीता झा

चित्र
जीते जी अपने स्त्रीत्व की  बरसी का जश्न मना रहे हैं हम नवयुगी महिलाएं हैं हम महिलादिवस मना रहे हैं लूटी अबलाओं का शोक भी और न लुटे अब कोई जननी इस प्रयास का संकल्प भी साथ करने जा रहे हैं हम नवयुगी महिलाएं हैं हम महिलादिवस मन रहे हैं बंद मुट्ठी थी हमारी जब तक  हाथ हमारे कहां जुड़े हुए थे खोल मुट्ठियाँ भ्रांतियों की हम स्त्री श्रंखला बना रहे हैं कर्तव्य के भारी दुशाले में जड़े उलाहनों के चटक कशीदे छोड़ अपनी बेटियों के रेशमी दुशाले  खुशियों से पिरोने जा रहे हैं हम नवयुगी महिलाएं हैं हम महिलादिवस मना रहे हैं हम घर की श्री हैं मानते सब अब अपनी उपस्थिति सबमे सुनिश्चित करना चाहते हैं अपनी कमजोरी का स्वयं  ही हम अंत करने जा रहे हैं  हम नवयुगी महिलाएं हैं  हम महिलादिवस मना रहे है   अवसादों को छोड़ झटक   सारी पीड़ाओं को दफ़्न कर   उत्साह, उमंग का खुद बढ़ कर   जीवन में संचार करने जा रहे हैं हम जननी हैं सृजन का श्रेय हमको  नई उम्मीदों में आत्मविश्वास का बीजारोपण करने जा रहे हैं हम नवयुगी महिलाएं हैं हम महिलादिवस मना रहे हैं नीता झा

मांग लो मुझसे तुम

चित्र
मांग लो मुझसे तुम जो भी चाहिए तुम्हे बस अपने अधिकार कभी मत मांगना लेलो मुझसे तुम  जब चाहो जो भी  बस अपनी आज़ादी  कभी मत मांगना  घूमना चाहती हो तुम  घूमो जी भरकर  बस पांव की बेड़ी कभी मत उतारना लिवा लो मुझसे तुम दिला दूंगा गहने तुम्हे  हथियार कभी न मांगना  सीखना चाहती हो तुम  सब सीखने दूंगा तुम्हे  चौसठ कलाएं सीखना   मशीन, गाड़ियां, जहाज  कभी मत चलाना सीखना मांग लो मुझसे तुम वैभव की सारी सुविधाएं बस कहीं मालिकाना हक कभी मत तलाशना वंश बढ़ाना, मान बढाना पर वंशवृक्ष, या हक के कागज़ पर नाम न चाहना सब मिलेगा चाह से अधिक मेरी पसन्द से सजना सँवरना  और चाकरी करना तुम  ताउम्र मेरे पौरुष की नीता झा