बारिश की ऐसी भी तैयारी - नीता झा
लॉक डाउन के कारण ही सही हमने पर्यावरण प्रदूषण को काफी हद तक कम किया ! फ़र्क भी महसूस किया दूर दूर तक साफ आसमान, चाहे वजह बुरी हो पर पर्यावरण की दृष्टि से बहुत कुछ सम्हल गया।
अब बढ़ती गर्मी और कटते पेड़ भी चिंता का विषय हैं अब हम लोग पूरे फर्श लगाकर उसपर गमले लगाने लगे हैं सुंदर तो लगता है पर बारिश का पानी ज़मीन तक नहीं पहुंच पता ऊपर से कंक्रीट के जंगलों में इतने उलझ गए पेड़ लगाना भूल ही गए।
अब हमे वृक्षारोपण की तरफ भी ध्यान देना होगा हर इंसन की यह जिम्मेदारी है। क्योंकि हमारा जीवन ही ऑक्सीजन पर निर्भर करता है तो ज्यादा न सही इतना ऑक्सीजन तो हम पृथ्वी को लौट ही सकते है जितना हमने उपयोग किया।
विचार तो बड़ा अच्छा है पर क्रियान्वयन थोड़ा मुश्किल तब जब हमारे पास जमीन की कमी हो ऐसे में कुछ उपाय कर सकते हैं इसके लिए करना बस इतना है की जब भी हम कोई फल, सब्जी काटते हैं जैसे- आम, अमरूद, संतरा, मुसम्बी, कटहल,जामुन इत्यादि के बीजों को अच्छी तरह से धो कर सूखने के बाद गोबर और मिट्टी में मिलाकर टेनिस बोल के आकर के गोले बनाकर अच्छे से सुखा कर डिब्बों में रखलें। जब कभी बरसात के दिनों में किसी खुली जगह जाएं जहां वो पेड़ लग सकता हैं। उन बीजों को छोड़ते जाएं बरसात के पानी में ये आसानी से जड़ें जमा लेते हैं।
साथ ही अपने बुजुर्गों की याद में किसी भी खुले उपयुक्त स्थानों पर सम्बंधित व्यक्ति या संस्था से सहमति लेकर अच्छे फलदार, छायादार वृक्ष लगाए जा सकते हैं।
आप देखेंगे आपका ये प्रयास धरती की हरियाली तो बढ़ाएगा ही वृक्ष लगाने की आत्मसंतुष्टि आपको हमेशा आनन्दित करेगी हमारे बहुत से भाई बहन यह पुनीत कार्य कर रहे हैं तो आइये हम भी पर्यावरण मित्र बने।
नीता झा
Bahut Sundar Sujhav hai.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआज पर्यावरण के बारे में बोलोगे तो बच्चा बच्चा इतना ज्ञान बघार लेगा लेकिन हक़ीकत कुछ और है,, सब छाया चाहते है पर सूखे पत्ते कोई नहीं ,पंछी सबको फोटो में अच्छे लगते हैं अपने आंगन में नहीं,,, पानी बचाओ बचाओ पर बोरिंग से पानी अकारण बहाते है जहाँ नल है उसकी टोटी नही ,, घर आंगन सङक गाड़ी सब धोयेंगे ,, किसी को मना करो तो लड़ लेंगे।
जवाब देंहटाएंहमे अपना काम करते रहना चाहिए
हटाएंप्रकृति, पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत ही बढ़िया सुझाव व नेक कार्य ।
जवाब देंहटाएंप्रकृति से मनुष्य केवल लेना ही चाहता है उसे केवल नुकसान ही पहुंचता है (जैसे एक बच्चा अपनी माता से हमेशा स्नेह पाता रहता है और माता भी अपना सारा सुख अपने बच्चे पर न्योछावर कर देती है और वह बच्चा कभी भी अपनी माता के सुख के बारे में नहीं सोचता) ।
मनुष्य जिस प्रकार प्रकृति माता से स्नेह, सुख प्राप्त किया है उसी प्रकार उसे प्रकृति माँ व उसके अन्य निर्दोष, निरीह, मासूम पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के सुख के लिए सोचना व कार्य करना चाहिए ।