संदेश

जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

झूम उठी तब धरती माता - नीता झा

चित्र
विचर रहे सावन में शिव - शिवा.. धरती माँ के हर इक कोने पर।। स्वागत को आतुर माँ प्रफुल्लित.. रिमझिम झड़ी में स्नान कर फिर।। विविध रंगों के फल, फूल सजाए.. हरित सुगंधित, परिधान सुसज्जित ।। भक्ति भाव से अगवानी करती माँ.. अपने आराध्य का ध्यान लगाती।।      सावन यानी सात्विकता का मौसम है। सावन के आते ही त्योहारों की शुरुआत हो जाती है। सावन सोमवार को महादेव पार्वती की आराधना का दिन होता है। पार्वतीमाता स्वयं प्रकृति हैं। सम्पूर्ण जगत वही हैं। और महादेव विनाश के स्वामी सही भी है। जब भी प्रकृति को रूष्ट किया बाढ़ आई, बादल फटे, भूस्खलन हुआ कभी भूकम्प आया और हम सब संतुलित रहा तो चहुं ओर सावन में उत्सव ही उत्सव मने। जिन पांच तत्वों से प्रकृति का निर्माण हुआ है उन्ही पंच तत्वों से हम भी बने हैं तो सामान्य सी बात है जो नियम प्रकृति के लिए बने हैं। सारे हमारे लिए भी तो हैं। जितना नियमित जीवन होगा उतना जीवन आनन्दमय होगा।       सावन के  मौसम में अपने आहार - विहार पर सम्पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। साफ - सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। बरसात में संक्रमण बढ़...

शिक्षा, शिक्षक और हम - नीता झा

चित्र
  मात पिता, गुरु को  वंदन..  जिनसे शिक्षा मिली प्रथम।।  अस्तित्व में आने से पहले..  अपार स्नेह है मिला प्रथम।।    जब भी गुरु की महिमा होती है। सर्वप्रथम अपने अम्मा-पिताजी और बड़े भाइयों का ध्यान आता है। उनसे वो भी सीखा जो प्रत्यक्ष सिखाया बहुत सी महत्वपूर्ण सीख ऐसी भी मिली जो अनुसरण कर मैने स्वयं उनसे सीखा।    फिर जब स्कूल गई अलग - अलग शिक्षक - शिक्षिकाओं से वर्षों विभिन्न विषयों का ज्ञान मिला सबकी अलग - पहचान,सबकी अलग सोच, पढ़ाने की भिन्नताएं फिर बदलती कक्षाओं में मिलते नए - पुराने सहपाठियों के साथ पढ़ने के अनुभव भी तो कुछ कुछ अलग ही होते हैं।     मैने महसूस किया है। शिक्षा की उपयोगिता इंसान का निर्धारण करती है और इंसान की उपयोगिता शिक्षा निर्धारित करती है।    आपने क्या, कहां और कितना सीखा ये महत्वपूर्ण तो है किंतु अपने अर्जित ज्ञान से आपने क्या किया ज्यादा महत्वपूर्ण है।     शिक्षा तो वही उत्तम है जो शालीन बनाए, विवेकी बनाए, समाज, देश, दुनिया के लिए कुछ अच्छा करने प्रेरित करे। विनाश के लिए ग्...

गुरुपूर्णिमा पर गुरुदेव को नमन - नीता झा

चित्र
    गुरु की महत्ता को नमन करने का पर्व गुरु पूर्णिमा,इस पावन पर्व में सभी गुरुजनो को नमन...  मनुष्य में जन्मजात प्रवृति होती है;अपने आस पास के परिवेश को देख, सुन,महसूस करके सिखने की। नवजात शिशु पढ़ना, लिखना,बोलना नही जानता किन्तु जन्म से ही सिखने की सतत प्रक्रिया मृत्यु पर्यन्त चलती ही रहती है।     जब हमे यह समझ आने लगता है कि हमारी शिक्षा का कोई नाम मिलने लगा है; तो हम वहां से अपनी शिक्षा की गणना करने लगते हैं। जबकि गुरु तो प्रकृति भी है। जड़ , चेतन, दृश्य,अदृश्य ,छोटे,बड़े,अपने,पराए जिनसे भी हम कुछ भी सीखते समझते हैं वही तो गुरु है ।       हम जीवन के अलग- अलग पड़ावों में कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं अब हमपर निर्भर करता है; हम किससे और क्या सीख रहे हैं । जो हम सीखते हैं समाज देश और हमारे परिवेश पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है। अर्थात सीधे शब्दों में कहें तो हम अपशब्द सीख रहे हैं अथवा भजन हमपर निर्भर करता है ।      विभिन्न समय व परिस्थितियों में हमारे ग्रहण किए हुए ज्ञान के मतलब भी बदल जाते हैं। दोनों ही अर्थ सही होते हैं जैसे हम...

मांडूक्य ऋषि की तपोभूमि मदकूद्वीप - नीता झा

चित्र
 सभी विवाहित जोड़ों की तरह हम शुरू से ही अपनी सालगिरह में कहीं घूमने जाते हैं। प्रायः बिना कुछ प्लान किये कुछ जरूरी सामान लिया, कार की टँकी फूल की फिर पूजा के बाद हल्का नाश्ता करके किसी मनपसन्द रेस्टोरेंट में कुछ खाया कुछ सूखा नाश्ता, मिठाई इत्यादि बच्चों और हमारी  मन पसन्द खाने की पर्याप्त सामग्री ले कर निकल पड़ते जहां मन किया, जब तक मन किया घूम फिर के एक दो दिन में वापस अपने घर नई ऊर्जा नई सोच के साथ बच्चों के अगले सत्र की पढ़ाई और अपने दायित्वों के सम्पादन में जुट जाने को.....  अब बच्चे बड़े हो गए हमारी शादी भी जीवन के अनुभवों के साथ  परिपक्व हो गई किन्तु हम अपनी वैवाहिक वर्षगांठ अब भी वैसे ही मनाना पसन्द करते हैं।        इसबार हम छत्तीसगढ़ के मदकूद्वीप गए थे। इससे पहले हमलोगों ने इस जगह का नाम कभी नहीं सुना था। फिर गाड़ी में ही नेट में सर्च करने पर वहां का बड़ा ही चौकाने वाला गौरवशाली इतिहास दिखा हम हरियाली भरे वातावरण से होते हुए जब वहां पहुंचे बड़ी मनोरम जगह थी वो शांत, सुंदर प्रकृति का सुंदर सात्विक स्वरूप.....  हम वहां...