गुरुपूर्णिमा पर गुरुदेव को नमन - नीता झा

   गुरु की महत्ता को नमन करने का पर्व गुरु पूर्णिमा,इस पावन पर्व में सभी गुरुजनो को नमन...
 मनुष्य में जन्मजात प्रवृति होती है;अपने आस पास के परिवेश को देख, सुन,महसूस करके सिखने की। नवजात शिशु पढ़ना, लिखना,बोलना नही जानता किन्तु जन्म से ही सिखने की सतत प्रक्रिया मृत्यु पर्यन्त चलती ही रहती है।

    जब हमे यह समझ आने लगता है कि हमारी शिक्षा का कोई नाम मिलने लगा है; तो हम वहां से अपनी शिक्षा की गणना करने लगते हैं। जबकि गुरु तो प्रकृति भी है। जड़ , चेतन, दृश्य,अदृश्य ,छोटे,बड़े,अपने,पराए जिनसे भी हम कुछ भी सीखते समझते हैं वही तो गुरु है ।
      हम जीवन के अलग- अलग पड़ावों में कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं अब हमपर निर्भर करता है; हम किससे और क्या सीख रहे हैं । जो हम सीखते हैं समाज देश और हमारे परिवेश पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है। अर्थात सीधे शब्दों में कहें तो हम अपशब्द सीख रहे हैं अथवा भजन हमपर निर्भर करता है ।
     विभिन्न समय व परिस्थितियों में हमारे ग्रहण किए हुए ज्ञान के मतलब भी बदल जाते हैं। दोनों ही अर्थ सही होते हैं जैसे हमें पहले सिखाया जाता है 1234 लिखना पढ़ना जो क्रम वार होता है वहीं जब हम कुछ बड़े होते हैं तो हमे पढ़ाया जाता है 450 जैसे अन्य अंकों के उपयोग जो सीधे क्रम में नहीं होते तो आप ये तो नहीं कह सकते ना की आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गलत थी।
     गुरु शब्द की गूढ़ता को समझना अत्यंत आवश्यक है। ये कभी भी नही भूलना चाहिए कि जिस तरह आप किसी से सीख रहे हैं ठीक उसी तरह कोई आपका भी अनुसरण कर रहा है। यदि कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो खुद को अच्छा रखें और अपना दृष्टिकोण स्पस्ट  रखिए।
     गुरु का ज्ञान तो प्रकाश की तरह होता है। आप उस प्रकाश को किस तरह अपने जीवन में रखते हैं वो आप पर निर्भर करता है।
      गुरु से ही ज्ञान है गुरु को सम्मानित, अपमानित करने वाले हम कौन होते हैं? 
      उनके सिखाए गुणों के सदुपयोग अथवा दुरूपयोग ही सही अर्थों में गुरु के प्रति हमारी भावनाएं दर्शाता है जो सिखाया जाता है उसे सही सीखें और दूसरों को सिखाएं यही सच्ची गुरुदक्षिणा भी होगी और गुरु का सच्चा सम्मान भी अन्यथा त्रुटिपूर्ण मन्त्र भगवान भी स्वीकार नही करते।
      अपनी आत्मा साफ रखकर ही सही शिक्षा ग्रहण करें और अपने उज्जवल भविष्य की ओर आगे बढ़ें।
                 नीता झा

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