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पारिवारिक योगाभ्यास केंद्र -

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"स्वस्थ परिवार, प्रसन्न परिवार  यही है सच्चे सुखों का आधार" जी हां साथियों निरोगी काया हो तो जीवन का आनन्द बढ़ जाता है। यही आनन्द तब और भी बढ़ जाता है जब हम सपरिवार स्वास्थप्रद माहौल बनाते हैं। हर उम्र, हर वर्ग और हर मौसम में योग का अपना महत्व है।  तो आइए हम अपने अपनो के साथ मिलकर योगाभ्यास करते हुए अपने जीवन को और भी आनन्ददायक बनाते हैं। इस हेतु हमारे योग गुरु डॉ. छगनलाल सोनवानी जी एवम श्री राव जी तथा सहयोगियों के कुशल नेतृत्व में हम खमतराई संतोषी नगर स्थित संतोषी माता के मंदिर के हॉल में योगाभ्यास द्वारा स्वास्थ्य लाभ अर्जित करते हैं। सपरिवार आइये । इसके लिए  अपना नाम इस नंबर पर रजिस्टर करवाएं....  सुबह 6.30 बजे से योगाभ्यास आरम्भ होगा अतः समय पर पहुंच कर अपनी जगह सुरक्षित करें....  योगाभ्यास खाली पेट मे ही करना है। प्रातःकाल उठ कर उखड़ू बैठ कर गुनगुने पानी को घूँट - घूँट कर पीएं इससे फिर शौच इत्यादि के बाद कुछ बिना खाए पिए ही आएं...  अपने साथ योगा मैट, दरी लाएं... मास्क लगाकर आएं अपने साथ रुमाल या नैपकिन इत्यादि लेकर आएं.... योगाभ्यास सुगमता से ...
      निरोगी काया, प्रसन्न मन और  ऊर्जावान जीवनशैली की बात ही कुछ और होती है। ये सब सफल जीवन के आधार हैं। इसलिए इनका ध्यान रखना भी हमारे जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए। तो आइए हम सर्वप्रथम विमर्श निरोगी काया पर करें।       निरोगी काया मतलब रोग रहित, व्याधि रहित काया का होना विरले ही मिलता है। इसके लिए खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता, उन्हें पकाने, खाने, खा कर पचाने फिर पचे हुए सत्व का शरीर पर किया जाने वाला शोषण और अवशिष्ट का सही समय, सही तरीके से निष्कासित होना ये सभी बातें संतुलित होनी चाहिए किन्तु ये सब संतुलित हों ऐसा प्रायः सम्भव नहीं है। ऐसे में हमे अपने शरीर की देखभाल के लिए सतर्क रहना चाहिए यथासम्भव व्यायाम, योग, खेल- कूद, शारीरिक श्रम करते रहना चाहिए।       प्रसन्न मन- अपने आप को खुश रखना सबसे पहले हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है। इसके लिए हम किसी और को हमेशा दोष नहीं दे सकते हां कभी - कभी जीवन की परेशानियां हमे तोड़ कर रख देती हैं। फिर भी जीवन हमारा है; उसे खुशियों के अवसर भी हम ही देंगे इसके लिए हमे आशावादी होना होगा, मन मे यह ठान ले ...

मैं बस्तर की कुंद फूल सखे - नीता झा

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बस्तर के जंगलों में पाया जाने वाला बड़ा ही सुगन्धित फूल होता है जो सफेद रंग का होता है। अपनी सादगी से परिपूर्ण होता है जिसपर मैने अपनी कविता रची है " मैं बस्तर की कुंद फूल सखे मुझमें गुलाब की आस न कर" मैं बस्तर की कुंद फूल सखे... मुझमे गुलाब की आस न कर।। मैं धवल - धवल सी यामिनी... मुझमे रंगों की आस न कर।।  मुझमें चंचलता,अल्हड़पन... उन्मुक्त पवनमें डोल सकूंगी।। हरियाली को देख सजन मैं... छंद प्रेम के गढ़ पाऊंगी पर।। मैं बस्तर की कुंद फूल सखे... मुझमें गुलाब की आस न कर।। वासन्तिक मौसम में मचल फिर... श्रंगारिका सी दमक उठूंगी।। ऊंची ऊंची पर्वतश्रंखलाओं पे... गीत अटल भी रच जाऊंगी।। कल - कल करते झरने संग... प्रेम गीत मैं बन जाऊंगी पर।। मैं बस्तर की कुंद फूल सखे... मुझमें गुलाब की आस न कर।। खेत - खलिहान को जो स्वर दे... वो लोक गीत मैं बन जाऊंगी।। मन्दिर में बजते मृदंग संग गाते... भक्ति गीत भी बन जाऊंगी पर।। मैं बस्तर की कुंद फूल सजन... मुझमें गुलाब की आस न कर।। हूं भारत की साधारण सी नार... छद्म रूप कभी ना धर पाऊंगी।। पर्वत की छाती से उपजा झरना... उसकी मूक मित्र हूं मैं सखे प...

पापा का दिया गिफ्ट - नीता झा

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"पापा का दिया गिफ्ट " में हल्के - फुल्के अंदाज में बेहतर सुविधा से युक्त मोबाइल फोन की बहुत सी अच्छाइयों के साथ ही इसके दुरूपयोग से कई बार बड़ी विकट स्थिति निर्मित होती है इसे व्यंग्यात्मक रूप से दर्शाने का प्रयास किया है।       शुरू - शुरू में तो सब बढ़िया था फिर एक दौर ऐसा भी आया जब स्मार्टफोन में इंसान कई - कई सिम लेकर मनचाही फेक आईडी बनाकर किसी को भी लुभाते - रिझाते थे। इसी चक्कर मे कभी खुद भी फंस जाते थे।    ये तो मनोरंजन मात्र है लेकिन हकीकत में बहुत से परिवारों के विघटन का कारण भी फेक आईडी जैसे आपराधिक प्रकरण रहे हैं। पापा का दिया गिफ्ट जीवन मे हुआ है शिफ्ट।। कभी खुद को तो कभी जन्मदिन के पूर्वप्रतिक्षित।। इस तोहफे को कोसते हैं कितनी आरजू थी मन मे।। हमारे हाथों में भी फोन हो  जिसमे हर पल के पिक हों।। थोड़े बहुत समझदार टाइप बहुत सेअल्हड़, फक्कड़ दोस्त हों।। ढेरों लड़कियां, दोस्तों के नाम ऐड हों खूब सारे झूठ और बहुत सारे।। खट्टे,मीठे अच्छे,गन्दे अफ़साने हों पर ये क्या गजब हो रहा है।। मोबाइल रूपी जासूस हर वक्त हमारी ही जासूसी करता फिरता।। हम जो भी क...

इंतज़ार करती है औरत - नीता झा

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 इंतज़ार करती है औरत..चाहे घर आते ही सताए..  पर देहरी पे आंख लगाए..देखती रहती है औरत!!  क्यों इंतज़ार करती है? कैसा  लगता होगा जब..  घण्टों लगा बनाए  सुस्वादु खाने में कमी सुन भी!!  मौन रह उलाहने अनसुनी कर माफी भी मांगती..  सारी जिम्मेदारी निभा भी कामचोर कहने पर भी!!  सारे काम से खुद गलतियों को सुधारती औरत..  सर्वगुणसम्पन्न के सम्मान से नवाजे जाने पर भी!!  पति का औरों को ताकते दूसरों में मगन देखना..  अपनी खुशियां औरों कि होते देख भी मुस्कुराना!! घूंघट से लोलुप नजरों की बदमाशियां देखना,.. अपनी तमाम उपलब्धियां ताक में रख कर!! औरों के सुर में सुर मिला जीवन यूंही बिताना.. भूल अपनी परवरिश के सारे सबक बस!! नए रिश्ते की इबारतें कंठस्थ कर जीना.. शादी के पवित्र बंधन को निभाने ताउम्र!! अकेले ही तमाम जतन करते ही जाना..  और भी बहुत कुछ घिनौनी मजबूरियां!!  क्यों सहती है औरत खुद नही जानती..  गर्भभस्थ शिशु की ममतामयी जननी!!  सींचती है उसे अपनी अदम्य शक्ति से..  न्योछावर करती अपना व्यक्तित्व सारा!!  बन ज...