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जनवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की पुण्यस्मृति नीता झा

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हमारे देश के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी जिन्होंने अपना सारा जीवन देश को स्वतंत्र करने में लगा दिया। जब उनका प्लेन क्रेश हुआ उसमे उनकी देह नहीं मिली.... सम्भवतः ये भी रहस्य उनके साथ ही रहा रहस्य हमेशा बहुत सी कहानियों को जन्म देता है। एक कहानी ये भी है कि उसी दौर में एक साधु के होने की पुष्टि कई जगह होती है जो नेताजी की तरह थे। खैर नेताजी व्यक्ति नहीं विचार बनकर आज भी देश में विद्यमान हैं। उन्हें और उन जैसे महान देशभक्तों को मिटाना हिमालय की सारी चोटियों को खोद कर खाई बनाने जैसा असम्भव है। उनकी जीवन भर की संचित देशभक्ति की ऊर्जा हमेशा हर भारतीय को गर्वित करती रहेगी।  हमारी भारतीय संस्कृति में जन्म- मृत्यु को लेकर जो सिद्धांत बनाए गए हैं उनका इतिहास बहुत पुराना है। उसे समझने, प्रतिपादित किये जाने तथा जनमानस तक पहुचने में वर्षों लगे होंगे और हजारों सालों तक जो बातें अथवा संस्कार हमारे व्यक्तित्व में विद्यमान हैं उनकी सार्थकता स्वयं सिद्ध होती है।     हमारी भारतीय परम्परा के अनुसार आत्मा अमर होती है और स्थूल शरीर नश्वर होता है, अर्थात स्थूल शरीर  नष्ट हो...

सजन - नीता झा

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माँ भारती की सेवा में सरहद जब फौजी जाते हैं.... देशभक्त परिजन उनमें तब कैसे शक्ति भरते हैं....  जी हां वीर सिपाहियों की जबाज़ी के किस्से तो बहुत होते हैं। दुर्गम पहाड़ी, तपता रेगिस्तान या बर्फीली घाटी के अंधे मोड़, भीड़ भाड़ या जन शून्य इलाके हर हाल वे माँ भारती की सेवा निसदिन करते हैं। वो भी तो किसी माँ के लाडले लाल हैं....  किसी पिता की बुढ़ी होती हड्डियों की जान हैं....  किसी बहन की शान हैं....  किसी सुहागन की पहचान हैं... उन्हें भी अपने दोस्तों की महफ़िल की चाह है.... वो भी तो हमारी तरह हाड़ मांस के इंसान हैं.... फिर क्या है जो फौजियों को इतना विशिष्ट बनाता है.... आग उगलती गर्मी, बर्फ की मोटी चादर या बरसाती सैलाब हर हाल में अपने कर्तव्य निभाते हैं.... निश्चय ही कच्ची उम्र के बुने हुए ख्वाब और उम्र के साथ बलवती होती देशभक्ति की भावना और अपने संकल्प की ओर बढ़ते प्रयास यही सब तो है सैनिक की पहचान....    ठीक इसी तरह एक नवयुवती जब किसी सैनिक की व्याहता होने का फैसला करती है। वो भी उन्ही ऊंचे आदर्शों की माटी से गूंथ कर बनी दृढ़निश्चयी, देशभक्त स्त्री होते ह...

हमारे आदर्श स्वामी विवेकानंद। - नीता झा

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स्वामी विवेकानंद बदल लिया चोला अपना और... बदली सकल दुनिया की रीत छोड़े पुरखों वाले काम काज... छोड़ चले सारे विलासी राज नरेन्द्रनाथ दत्त का चोला छोड़... समाज सुधारक विवेकानंद।। अपनी ओजस्विता बिखेरी... अध्यात्म, योग की बात कही।। लिख दिए निचोड़ जीवन के... नकारात्मकता का नाश किया।। राज योग, कर्म योग और रचे... भक्ति योग और ज्ञान योग भी।। सारा जीवन आध्यात्मिक हो... गुरु सानिध्य में रह ज्ञान लिया।। कोमल पर दृढ़ शब्दों में जब... भारत का नवयुवक बोला था।। सुई पटक सन्नाटे में उस दिन... विदेश में नया अध्याय गढ़ा था।। नीता झा
हमारे प्राचीन ऋषियों के कठोर तप से प्राप्त अथाह ज्ञान का यदि एक पासंग भी हम समझ पाए तो जीवन सार्थक हो जाएगा भयत गर्व होता है। वायु एक छोटा सा शव्द ठीक ॐ या माँ की तरह विशाल, व्यापक हमारे जीवन की उतपत्ति के आधार पंच तत्वों में से एक जो हमेशा हमारे स्थूल से लेकर सूक्ष्म शरीर मे पांच तरह से विद्यमान होते हैं जिनका संतुलन निश्चय ही सम्पूर्ण स्वस्थ के लिए आवश्यक है। जो दृष्टिगोचर न होकर भी हमे सदैव संचालित करे उन्हें हम आदर देते हैं। फिर वो जड़, चेतन, दृश्य, अदृश्य हो यही तो हमारी ऋषि परम्परा की सबसे बड़ी विशेषता है। उनका गहन अध्ययन और उससे अर्जित अद्भुत ज्ञान जब हम पूरी श्रद्धा से जिज्ञासु भाव लेकर ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं तब बहुत से रहस्योद्घाटन होते हैं।

स्त्री विमर्श - नीता झा।

तुम कोई किताब नहीं.. के पढ़ लूं हर्फ़ दर हर्फ़।। तुम कोई आदत भी नहीं.. के दोहराऊं हर एकपल।। तुम धड़कन भी तो नहीं.. जिसे प्राण ही कह पाऊं।। तुम वो छवि भी तो नहीं.. जो सजता मेरे वजूद में।। तुम मीत भी तो नहीं मेरे.. जो खड़ा साथ बेखौफ।। फिर तुम क्या हो जानते हो.. एक अचंभित स्तब्ध पुरुष।। जो देखना चाहता है मुझे.. नए दृष्टिकोण से नए ढंग से।। पर साहस नहीं नज़र भर देखे.. खुलकर अपने विचार रखे।। डरता है अनन्तकाल के दर्प से.. अपने पोषित एकछत्र अधिकार से।। हां ये तुम्हारा कौतूहल मात्र है.. स्त्री के बढ़ते कुशल व्यवहार पर।। नीता झा