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वट सावित्री की शुभकामनाएं - नीता झा।

तुम्हे देख इस सलोने रूप में.. समय लौट आता है वापस। इस उमस भरी गर्मी में जब.. तुम सिंगार बहुत करती हो। पांव में पायल, बिछिया और.. चटख आलता सजाती हो। हाथों में मैचिंग की चूड़ियां.. जेवर भी मन से पहनती हो। दौड़ भाग भी सारा दिन कर.. बड़े चाव से पूजा करती हो। बड़ा भाग्य मेरा मेरी खातिर.. व्रत उपवास भी करती हो। मन बड़ा आभारी उस पल.. जब शीतलता देने को तुम। पंखा बड़े प्यार से झलती.. सच तुमसँग अच्छा लगता है। जितने जन्म वो बीते तू संग.. ये भगवती से मैं मांगता हूं। तुम करो पूजा मेरी खातिर.. मैं तुम्हारे लिए विनती करता हूँ। अभी व्रती देवियों को वटसावित्री की शुभकामनाएं प्रणाम आशीष यथायोग्य हम सभी के जीवन मे सदा सौभाग्य बना रहे सभी बड़ो का आशीर्वाद और सभी देवी देवताओं की कृपा बनी रहे नीता झा

चलो उठो - नीता झा।

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कभी न कभी हर किसी को जीवन मे ऐसे अप्रिय समय का सामना करना ही पड़ता है जब घोर निराशा हावी हो जाती है। ऐसा लगने लगता है। मानो जीवन ही व्यर्थ हो गया जीने की लालसा नहीं रहती है...... इस पीड़ा को लेकर सबकि अपनी सोच होती है। सबका अपना दृष्टिकोण..... किसी के लिए जो परिस्थिति आनंददायक होती है किसीकी नज़र में वही आत्महत्या की स्थिति....  अतः जब परिस्थितियां मूल कारण नहीं तो फिर क्या है ?जो निराशा का कारण बनता है....      वो है हमारी परिस्थितियों को लेकर की गई धारणा। बहुत से लोग परीक्षा में असफल हो कर जान देने की बात करते हैं। कुछ लोग बिना डिग्रियों की परवाह किए अपनी ज्ञानपिपासा के चलते मजे से पढ़ते हैं। कभी विद्या को विद्या समझकर सीखें तो सफलता असफलता के बंधन से मुक्त होकर एकाग्रता से पढ़ेंगे तभी स्वतः ही सब याद होता जाएगा निराश लोगों के भी अपने बहुत सारे तर्क होते हैं। कुछ सही भी कुछ गलत भी जो आपने तैयारी की उसमे कमी रह गई होगी लेकिन बहुत सारा आपने  पढा हुआ है। फिर डर काहेका पहले से और ज्यादा मन लगाकर पढ़ेंगे निश्चित सफलता मिलेगी।   ऐसे ही प्रेम भी बहुत लोगो...

जीवन मे सुख के प्रमुख स्रोत...... नीता झा।

जीवन मे सुख के प्रमुख श्रोत क्या हैं... भगवान - जिनकी सबसे विशिष्ठ रचना हैं हम वे हमेशा विभिन्न प्रकार से हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। जिसे समझ गए तो सुख ही सुख है.... ग्रह नक्षत्र - ये विभिन्न तत्वों की विशेषता लिए हुए सतत चलायमान रहकर अपनी जिम्मेदारियों का बोध कराते हैं। समय पर किया सही काम सुख का द्वार खोलता है.... भाग्य - भाग्य की चाबी चाहिए तो सकारात्मक सोच रखें आधा गिलास भरा देखने की आदत रखें नियत हो अपने अतिरिक्त श्रम से पूरा कर्म करें  निःसन्देह सौभाग्य का तिलक भाल सजेगा.... रिश्तेदार - प्रकृति के दिये वे अनुपम उपहार हैं जो हमारे जन्म - मृत्यु से परे हमसे जुड़े होते हैं। अपनी उम्र और रिश्ते की मर्यादा इस प्रकृति प्रदत्त उपहार की सबसे बड़ी पोषक है। प्यार सम्मान दें बदले में प्यार सम्मान मिलेगा .... पड़ोसी - हमारे जीवन के वो सबसे करीबी लोग जिन तक सबसे पहले हमारे सुख दुख की खबर पहुंचती है। जो सबसे पहले हम तक आते हैं। यदि हम उनसे अपनत्व और सम्मानजनक व्यवहार रखते हैं तो बदले में हमे भी उसी सुख की अनुभूति होती है.... सरकार - सरकार हमारी ही तैयार की हुई एक व्यापक व्यवस्था है जो पर...

अचानक तो नहीं टूटा दिल.... नीता झा

अचानक तो नहीं टूटा है.. फिर किस बात की हैरत।। हर सांस से ली है नफ़रत.. हर सांस पे छोड़ी हिम्मत।। आखिर दिल ही था टूटा.. उसकी थी बड़ी हसरत।। तोहमतें किसी पर क्यों.. और कैसी कहो अदावत।। फिर फर्क ही क्या कहो.. पिंजर में कैद पंछी ही है।। पैबस्त जिस्म में महफूज.. बिखरे भी तो पता न चले।। दिल का ही तो बहा खून.. दिल ही कि ख़ता भी है।। दिल का ही सारा कुसूर.. दिल का ही सारा कुसूर।। नीता झा

पता नहीं...नीता झा

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पता नहीं चला कितनी बार जलीं उंगलियां.. याद नहीं कितने फफोले उठे रोटियों संग।। उफनती चाय और छानते पकौड़े में उठते.. गर्म तेल के बिखतरे नर्म हाथ जलाते छींटे।। ये भी तो याद नहीं कितनी दवाइयां मिलीं.. प्यार भरी उनकी मीठी झिड़कियों के संग ।। फिर चुपचाप बिठा लगाते प्यार से मलहम.. सम्हाल भी तो लेते हैं सारे बिगड़े मेरे काज।। मायके के वात्सल्यमई संसार से विदा हो .. वैसी सी प्यार भरे उनके संसार मे बस गई।। अपनत्व से अधिकार जताती नजदीकियां.. सभी लोगों की हमे ले की जाने वाली फिक्र वैसी ही भरोसे वाली सदा मान बढ़ाने वाली.. पता ही नहीं चला कब उनमें घुल मिल गई।। कब हमारी सोच बिल्कुल एक सी हो गई.. उनकी देंह झुलसाती गर्मी की तपस्या और।। मेरी घर भीतर की तमाम छोटी बड़ी समस्या.. दूध चीनी मय हो संवार गई संसार हमारा।। पता ही नहीं चला हमारा प्यार भरा जीवन.. सपनो की बगिया से सुंदर उपवन बन गया।। पता ही नहीं चला कब कैसे समय बीत गया.. पता ही नहीं चला कब कैसे समय बीत जिस।। नीता झा

मेरी बेटी। - नीता झा।

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वह पल जब वह गोद मे आई... लगा मुझसे कोई परी है आई!! सुकोमल फाहे सी नरम लगती... रंगत मानो अप्सराओं से लाई!! तीखे नयननक्श, अदा निराली... सारी खूबियों की नन्ही पिटारी!! धीरे धीरे जब रखे पांव डगमग... न गिर पड़े सोच मन हुक उठती! संतोष बड़ा हर दम आँचल थामे... मेरे ही संग में वह चलती फिरती!! मातृहीन माँ को फिर मां थी मिली... नन्हीं अंकु के रूप में मैं जी उठी!! आज फिर घर-आंगन में जब चलती... मेरी नन्हीं परी मातृत्व वरदान लिए!! आशीष देती सुखी रहे हरपल बेटी नीता झा

रंग ही तो है सजन - नीता झा

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रंग ही तो है सजन सज भी तो जाओ कभी.. हमेशा उजले दिखते हो!! मैं तो रंग गई सारी की सारी तुम्हारे रंग में.. तुम भी तो रंग जाओ!! बस भूल ही तो जाना है अपने आप को.. मुझे सोच भूलो आप को!! बस बदलना ही तो है थोड़ा अपने आपको.. प्यार है तो कर सकते हो!! मैं रंग, ढंग, रिश्ते, कपड़े, घर आदतें बदली.. सादगी छोड़ रँगी सतरंगी!! अब क्या तुम भी मुझ से हो सकते हो कभी.. पूरी तरह पहचान बदलते!! अपनी पसंद और जरूरत, मकसद बदलते.. मेरे हो बताने चिन्ह लगाते!! बहुत आसान है यदि प्रेम रंग हो मध्य हमारे.. सारे रंग शोभा पाएंगे तुमसे!! मांग से हो पांव तक मैं रंगी सजन रंग तुम्हारे.. तुम भी तो मुझसे रच बस जाओ!! रंग ही तो है सजन सज भी तो जाओ कभी.. हमेशा उजले दिखते हो!! नीता झा

मेरी अम्मा - नीता झा।

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मेरी माँ असंख्य रूपों में झिलमिलाती हैं माँ भारती की सागरिका में सितारा बनकर मुझे प्यार से संवारती हैं हर पल नेह बनकर मेरे सपनों में रंग भरती हैं मार्गदर्शक बनकर नई डगर थामे हाथ चलतीं पथप्रदर्शक बनकर हाँ मेरी सारी अग्रज मुझे संवारती हैं माँ बनकर बड़े जतन से थमाती। कुंजी मेरे भविष्य के सपनो की मेरी माँ असंख्य रूपों में झिलमिलाती है सखी, हमजोली, बहन, भाभी, मामी, मौसी बनकर हाँ नन्ही परियों की मुस्काम, बुजुर्गों के ज्ञान और रीतियों की पहचान, कई विधाओं की शान बनकर मेरी माँ असंख्य रूपों में झिलमिलाती हैं हमेशा धड़कती हैं मुझमें धड़कन बनकर नीता झा