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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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  आसनों के बहुत से लाभ देखे गए हैं। सही विधि से किये गए आसन कठिन से कठिन रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं वहीं सही जानकारी व विधि से आसन न करने पर लाभ की जगह हानि भी हो सकती है अतः योगासनों से समुचित लाभ हेतु कुछ प्रत्येक साधक को भी जानकारियां होना आवश्यक है ताकि वे अपनी व्याधियों में क्या करें क्या न करें स्वयं भी जानें और अपने जीवन का भरपूर आनंद लें.....   आज हम जानते हैं कौन से आसन कौन से रोगी को नहीं करना चाहिए १ - सूर्यनमस्कार  - उच्चरक्तचाप, हृदय रोग, हर्निया में सूर्यनमस्कार नहीं करना है। २ - भुजंगासन -  हर्नियाके रोगियों को भुजंगासन नहीं करना है ३ - पश्चिमोत्तानासन - हर्निया, अपेंडिसाइटिस में पश्चिमोत्तानासन नहीं करना है ४ - सर्वांगासन - उच्च रक्तचाप व हृदय  रोग में सर्वांगासन नहीं करना है। ५ - हलासन - उच्चरक्तचाप, हृदय रोग में हलासन नहीं करना है। ६ - धनुरासन - उच्चरक्तचाप, हृदयरोगियों को धनुरासन नहीं करना है। ७ - योगमुद्रा - हर्निया, अपेंडिसाइटिस और कमर दर्द में योगमुद्रा नहीं करना है। ८ - शीर्षासन - उच्चरक्तचाप, हृदयरोग, आंख, कान, नाक क...

अपनी जिम्मेदारी समझें। - नीता झा।

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  कश्मीरी पंडितों के साथ हुई बर्बरतापूर्ण हिंसा को वर्षों तक सहन करना फिर उसे तथ्यों के साथ दुनियां के सामने लाकर अनुपम खेर अभिनेता, कश्मीरी पंडित से कहीं ऊपर एक विचार बन गए...  ऐसे तो कुछ वर्षों से जनमानस में वैचारिक परिवर्तन होना शुरू हुआ है। ये जागरूकता देश हित मे है। देश की अस्मिता की रक्षा हर हाल में होती रही है... आगे भी होती रहेगी। अब हमें भी दर्शकदीर्घा से हट कर अपनी जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। किसी की निंदा करने तक न रह कर हमारे पूर्वजों ने जो महान ग्रन्थ लिखे दुनियां को अच्छी सोच दी उन ग्रन्थों के पठन पाठन के लिए संस्कृत भाषा के प्रशिक्षण के साथ ही अपनी मूलभूत संस्कृति की गरिमा से सभी को अवगत कराना चाहिए।  हम महिलाओं ने अन्य कई विधाओं के साथ लोगों में स्वस्थ मानसिकता का बीजारोपण करने का प्रयास शुरू भी किया है। ताकि बच्चे अपने गौरवशाली इतिहास को समझें अमल में लाएं। अपने बड़ों से जो भी वे सीखना चाहें सीखे, जाने, समझें विभिन्न मसलों की आग में झुलसे... जातियों में बंटेअब एक होने लगे हैं।।  सारे लोग तिरंगे में इकट्ठे होने लगे हैं... देश की आन से ...

योग अर्थात जीवन और आनन्द का सुयोग - नीता झा।

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योगाभ्यास तथा प्राणायाम में श्वसन क्रिया का अत्यधिक महत्व होता है।  नियंत्रित तथा लयात्मक तरीके सांस लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। साँसों को बाहर की तरफ छोड़ने को रेचक कहते हैं। साँसों को अंदर रोकने को आंतरिक कुम्भक कहते हैं। सांसों को बाहर ही रोक कर रखने को बाह्य कुम्भक कहते हैं। नाड़ी शोधन प्राणायाम नाम से ही पता चलता है कि इसके अभ्यास से हमारे शरीर की सम्पूर्ण बहत्तर हजार नाड़ियों पर प्रभाव पड़ता है। उचित विधि से किये गए प्राणायाम से छोटी से लेकर बड़ी सभी नाड़ियां दोषरहित होती हैं।  प्राणायाम में दाईं नासिका छिद्र से सांस बाहर निकालें फिर प्राणायाम शुरू करें- 1 -  पांच गिनते तक दांयी नासिक छिद्र से सांस लें इसे पूरक कहते हैं 2 - दस गिनते तक दोनों नासिका छिद्र बन्द करके सांसों को रोक कर रखें इसे आंतरिक या अंतर कुम्भक कहते हैं 3 - दस गिनते तक बांई नासिका छिद्र से सांसों को बाहर करें इसे रेचक कहते हैं 4 - पूरी सांस बाहर होने पर दस गिनते तक दोनों नासिका छिद्र बन्द कर ऐसे ही रहे इसे बाह्य कुम्भक कहते हैं। 5 - बांई नासिका छिद्र से पुनः पांच गिनते तक पूरक करें फिर दस...
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पता नहीं चला कितनी बार जलीं उंगलियां.. याद नहीं कितने फफोले उठे रोटियों संग।। उफनती चाय और छानते पकौड़े में उठते.. गर्म तेल के बिखतरे नर्म हाथ जलाते छींटे।। ये भी तो याद नहीं कितनी दवाइयां मिलीं.. प्यार भरी उनकी मीठी झिड़कियों के संग ।। फिर चुपचाप बिठा लगाते प्यार से मलहम.. सम्हाल भी तो लेते हैं सारे बिगड़े मेरे काज।। मायके के वात्सल्यमई संसार से विदा हो .. वैसी सी प्यार भरे उनके संसार मे बस गई।। अपनत्व से अधिकार जताती नजदीकियां.. सभी लोगों की हमे ले की जाने वाली फिक्र वैसी ही भरोसे वाली सदा मान बढ़ाने वाली.. पता ही नहीं चला कब उनमें घुल मिल गई।। कब हमारी सोच बिल्कुल एक सी हो गई.. उनकी देंह झुलसाती गर्मी की तपस्या और।। मेरी घर भीतर की तमाम छोटी बड़ी समस्या.. दूध चीनी मय हो संवार गई संसार हमारा।। पता ही नहीं चला हमारा प्यार भरा जीवन.. सपनो की बगिया से सुंदर उपवन बन गया।। पता ही नहीं चला कब कैसे समय बीत गया.. पता ही नहीं चला कब कैसे समय बीत जिस।। नीता झा

सूर्य नमस्कार - नीता झा

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सूर्य नमस्कार वैदिक काल से हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा भगवान सूर्य की उपासना तथा स्वास्थ्य लाभ हेतु की गई आसनों की अत्यंत प्रभावशाली श्रंखला है। नियमित रूप से सूर्यनमस्कार करने के शारिरिक एवं मानसिक सकारात्मक प्रभाव सहज ही दिखने लगते हैं। सूर्यनमस्कार पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर करना चाहिए। सूर्यनमस्कार करने के लिए सबसे सही समय सूर्योदय के समय होता है। सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर खाली पेट सूर्यनमस्कार करना चाहिए। सूर्यनमस्कार तथा अन्य आसनों के आधे धंटे तक कुछ भी खाना पीना नहीं चाहिए। सूर्यनमस्कार आराम से करना चाहिए जल्दी जल्दी नहीं करना चाहिए। सूर्यनमस्कार में सात आसन होते हैं जिनमे शुरू के पांच तथा आखरी के पांच आसन समान होते है।  छठवां तथा सातवां आसन एक बार ही किया जाता है। इनकी बारहों आसनों के नाम तथा लिए बारह मंत्र ये है.... 1 ॐ मित्राय नमः  - प्रणाम आसन 2ॐ रवये नमः  - हस्तोतानासन 3ॐ सूर्याय नमः - पादहस्तासन 4ॐ भानवे नमः-  वाम अश्वसनचलन 5ॐ खगाय नमः - पर्वतासन 6 ॐ उष्ण नमः - अष्टांगनमन 7 ॐ हिरण्यगर्भय नमः - भुजंगासन 8 ॐ मरीचये नमः - पर्वतासन 9 ॐ आदित्...

हमारे "पारिवारिक योगाभ्यास केंद्र में महिला दिवस के कार्यक्रम - नीता झा

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हमारे पारिवारिक योगाभ्यास केंद्र में बड़े हर्षोल्लास से महिला दिवस मनाया गया इसमे हमारे वार्ड की पार्षद श्रीमती गोदावरी साहू जी ने महिलाओं को शुभकामनाएं दीं साथ ही महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु हर सम्भव सहयोग का आश्वासन दिया श्री गज्जू साहू जी ने योग स्थल को सर्वसुविधायुक्त बनवाने का आश्वासन दिया ,  डॉ प्राची उपासने, श्री सचिदानन्द उपासने जी ने महिलाओं को शुभकामनाएं दीं तथा आचार्य छगनलाल सोनवानी जी ने योग द्वारा कैसे स्वास्थ्य रक्षा की जाए यह बताया साथ ही माननीय प्रधान मंत्री जी  के "रोग मुक्त भारत अभियान" की उपयोगिता पर प्रकाश डाला साथ ही ino तथा सूर्या फाउंडेशन के योग तथा प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को अत्यंत सरल और प्रभावशाली वक्तव्य द्वारा सहजता से समझया,श्री  तथा श्रीमती लहरे जी ने मधुर संगीत से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाईके साथ आईं योग परिवार की सभी योग सखियों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई। साथ ही कोविड के कारण लंबे समय से ऑनलाइन चल रहे योगाभ्यास को पुनः सन्तोषी मंदिर में शुरू करने का निर्णय लिया  गया। यहां हर उम्र की महिलाएं तथ...

मन नहीं था जाने का पर - नीता झा

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मन नहीं था जाने का पर.. सारा घर भेजने आतुर था।। क्या कहती, क्या छुपाती.. बस जी भर के रोना था।। अपना बिस्तर बरसों का.. रजाई से मानो जकड़े था।। उठने की हर कोशिश में.. आंसुओं का सैलाब था।। खूब सारे सामानों से होता.. किस्सों का इक पर्चा होता।। कमरे पर ठुमक ठुमक कर.. चलता बचपन, यौवन था।। अलमारी के सारे सामानों में.. यादों का गहरा पहरा लगा था।। हर कपड़े से जुड़ी कहानी और.. कहानी के किरदार की कहानी।। पुराना जीवन, पुरानी सखियां.. पुराना सारा ही संसार सजा था।। पुराने सारे बीते अपने से वे पल.. रोक रहे जाने से अल्हड़ सारेपल।। मन मेघ बरसने को आतुर हुआ.. बाहर बिदाई का माहौल सजा था।। बजने लगी दरवाजे की कुंडी.. ये नए जीवन का आगाज़ था।। सुर्ख लाल जोड़ा, गहनों संग.. रूप दमकाता सिंदूरी चेहरा।। ढंकता सारे भावों को घूंघट.. बांध रुदन का फूट पड़ा था।। चंद पलों में अबअजीब सन्नाटा.. बेटी संग उत्सवी माहौल का।।  ठहरा बस जो माँ के आंचल.. काजल संग बहता आंसू था।। बदल गया पता ठिकाना सारा.. आँचल भी तो बदल गया था।। ओली थामती सासु माँ और.. आँचल उन्होंने विश्वास धरा।। लगा सीने से वो तृप्त हो गई.. बेटी बिदा की ...