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रात जागता मैं उलझा हूँ। नीता झा

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रात जागता मैं उलझा था.. अपनी प्रगति की दुर्गति से!! भयाक्रांत, निढाल पड़ा था.. कलम पूछ रही थी मुझसे!! एक बात बड़े ही धीमे से.. पहले बताओ नाराज़ तो नहीं!! मेरी लिखी कुछ इक बातों से.. मैने अचरज से तब कह दिया!! ये क्या पूछ रही हो तुम मुझसे .. किस अंजनी दुविधा में हो? कुछ सहमी वह शांत पड़ी थी.. क्यों मुझसे तुम डरती हो? हम दोनों की ताकत ही तो.. तलवार से तेज हो जाती है!! तुम नहीं गर मुझमें समाहित.. वो ओज कहां फिर आएगा!! जो रण भूमि में जान भरे वो..  भाव भला कहां से आएगा!!   मेरे भावों का सार, रस, छंद.. कहां बोधगम्य हो पाएगा!! हम दोनों हैं पूरक समझो.. मुझमें न तुम संशय करो!! सुन बातें आश्वस्त हो कहा.. वो तो मैं भी समझ रही हूं!! बचपन से तुम्हारे  संग हूं.. तुम्हारे सारे भावों की बस!! इकलौती मैं ही हमराज़ हूं.. इसी लिए आगाह कर रही!! तुमको तुमसे बचा रही हूं.. भाव मे उसके समझ रहा था!! किंचित लज्जित भी हुआ.. समझने की गरज से कहा!! मैं न बिका न बहकाया गया.. बस जीने की कोशिश में हूं!! अपनी जान बचा-बचा कर.. सच्चाई बयान करता रहता!! हो जाता हूँ तल्ख अगर तो.. छमा याचना करता हूँ पर!! र...

बुढ़ापा। नीता झा

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कोमल, स्निग्ध देंह झुलस कर.. कब टूटी और बिखरी, ढेर हुई!! पता कहां चल पाया काया को.. काल की गति बड़ी ही मंथर थी!! बलशाली, विजयी, महाप्रतापी.. कई दुनियां को बर्बाद किये थे!! सभी दिशा में बादल बन छाए.. जीत के धोखे में सारे जग को!! तुच्छ जान अकड़े बड़े फिरते.. कुछ ने अपनी अच्छी सोच से!! इस दुनियां को स्वर्ग  बनाया.. सारे जन मानस की खातिर!! इस जग को सुंदर सजाया है.. बरसों बरस जीवन के मेले में!! सोचा कब था शांत चित्त रह.. दुनियां चन्द दिनों का खेला है!! छोड़ यहीं सारा कुछ इक दिन.. सबको इस दुनियां से जाना है!! जब आता दुष्कर बुढापा तन में.. मन वैरागी त्यागने चोला आतुर!! अपनी सुध तब लेकर अंत समय.. भगवान भक्ति में रम जाता है!! नीता झा

योगाभ्यास बनाम अपने आपसे मित्रता.... नीता झा।

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      जी हां साथियों यौगिक क्रियाओं में ऐसे तो शरीर के सम्पूर्ण अंगों को विकार रहित करने की क्षमता होती है।        साथ ही सही तरह से किये गए योगाभ्यास से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास बड़ी सहजता से होता है।        योगाभ्यास के उत्तम लाभ हेतु रात में आठ बजे से पहले भोजन ग्रहण करके सोने से पहले हल्दी वाला दूध या गुनगुना पानी पीना चाहिए। कम से कम आठ घण्टे की नींद एक सामान्य वयस्क को लेनी ही चाहिए इसके लिए जल्दी सोने की आदतें डालें मोबाइल से दूरी अच्छी नींद के लिए सही है।        सुबह बासी मुह में ही कम से कम 2 गिलास पानी उखड़ू बैठ कर पिएं धीरे - धीरे पानी की मात्रा बढ़ाएं  शौच इत्यादि से निवृत होकर आरामदायक कपड़े पहनकर योग का अभ्यास करें।       योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में ही योगाभ्यास करना चाहिए हर आसन को करने से पहले हमें उसके महत्व को समझना चाहिए.....       अपनी अवस्था, आयु और क्षमता के अनुसार योगाभ्यास करना चाहिए। कुछ बीमारियों में कुछ आसान तकलीफ देते हैं अतः ...

महिला दिवस - नीता झा।

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अनदेखे, अनसुलझे मसले.. अलग अभी भी कर जाते हैं।। पूर्वाग्रह की तलवार के चलते.. सारे अपने धीरे से कट जाते हैं।। तुम निपट अकेली रह जाती हो.. फिर बौराई, घबराई उदास बहुत।। अपनी परछांई से भिड़ जाती हो.. उठो निकलो अपने अवसादों से।। खुद को ही तुम पहले सम्मान दो.. अपनी गरिमा जो बचपन से जोड़ी।। उनकी तो पहले खुद ही कद्र करो.. अंतर्मन के मिथ्याभिमान में तुम।। यूँ ही ना खुद को ही कैद करो.. बढ़ो चलो उन राहों पर तुम भी।। जो स्त्री की गरिमा द्विगुणित करे.. बन सकती हो तुम भी गार्गी, उषा।। अपनी विद्या को कुछ श्रम तो दे.. बांट सको तो बांटो अपनी विद्या।। भारत माँ की सच्ची बेटी तो बनो.. तुम उर्वरा, तुम ओजस्विनी तुम ही।। माँ भगवती की ज्योति पुंज हो.. चलो तप कर खुद को कुंदन करो।।     नीता झा

वसंतपंचमी की शुभकामनाएं - नीता झा।

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वासन्तिक आभा में दमकता... माँ भारती का रूप अद्वितीय।। मानो ऋतुओं के संधिकाल में ... सतरंगी चुनर ओढ़े  विचारती।। वीणा के रस कानो में घोलती... विद्या देवी चली आरही हौले।। हमको देने ज्ञान की थाती.... हों आप सभी विद्वता से पूर्ण।। जीवन जैसे हो पर्याय सद्गुण... शुभकामनाएं वसंत पंचमी की।।   ऋतुओं के संधिकाल में जब वर्ष बदलने आतुर चोला...   भक्ति भाव से करलें विद्या मां का हम पूजन...   खेतों की रंगोली मोहक बदल रही प्रतिदिन रंग, रूप, गुण अनेक....    मद्धम हवा भी हो रही थोड़ी चंचल बीजों का करने विकिरण...     सधी हुई शिल्पी मां प्रकृति गढ़ रही हर मौसम की जादूगरी...     माँ भगवती दे रही है हम सबको अपनी आशीष....  अब तपने की तैयारी में निकले सूर्य देव प्रातः शीघ्र...  बदल - बदल कुछ भोज्य पकाएं बहुतेरे कच्चे का अब करें जो सेवन....  खुली हवा में करते जो योग मिले खुशियां अद्भुत अनमोल....              नीता झा

बन्द पलकों में आते हो तुम - नीता झा

बन्द पलकों में आते हो तुम... अनगिनत लम्हों की यादें बन।। मुझको मुझसे मिलाते हुए से... सतरंगी अहसासों को लेकर।। ठहर, ठिठक कर थम जाती... मुझमें मेरी सारी परेशानी।। तुम्हे देख मचल उठती फिर... मेरे मन की निश्छल तरुणाई।। भागमभाग में थकी हुई फिर... मीठे अहसासों में खो जाती हूं।। तुम दोनों से मिलकर मैं फिर... नन्ही सी नीता हो जाती हूँ।। बिसरा बालों की सफेदी... उम्र को भी भूल मैं जाती हूँ।। बचपन के सुखद पलों में फिर... बेझिझक विचरने लगती हूं।। गुनगुनाती सुबह, इठलाता दिन... और कहानी से बुनी रातें ओढ़।। बस्तर की सुरम्यता में विलीन फिर... अम्मा की गोद मे सो जाती हूँ।। महसूस करती दोनों के प्यार को... धान की अधपकी बालियों को।। गांव की निर्मल ठंडी हवा को... अपने अपनो के निश्छल प्रेम को।। विचरण करती चितरकोट घूमर में... कुटुमसर की डरावनी गुफा में।। कस कर तुमलोगों के हाथ थामे... उन्मुक्त विचरती शहीद पार्क में।। जब अचानक पाती हूँ खुद को... केशकाल की तलहटी से गुजरती।। उमस और भीड़ से घिरी हुई सी... सुनाई पड़ती है तब कानों में।। शहरी सुबह की चीखती पुकार... कचरे की जबरदस्त गुहार।। छीन लेती है मुझसे फिर मुझे......

संध्यासुन्दरी का हुआ आगमन नीता झा

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आई लकधक चांद देश से... प्रकृति  किए नीलम श्रंगार।। सावन की पालकी में उतरी... संग चली बूंदों की झनकार।। चली हवा संग लिए जीवनी... पोषित करने सारा संसार।। बसे झीने नीलाभ दामन में... जीवन के हैंअवसर अपार।। नील गगन भी हर्षित-मुदित... आया मधुरम कौमुदी त्योहार।। श्यामसुंदरी आई ओढ़ चुनरी... रंग महल सा लगे सारा संसार।। खारा समंदर भी लगे मुस्कुराता... जब हुआ आगमन खुशियों का।। कण-कण आल्हादित झूम उठा... जब आई सावन की मीठी बौछार ।।      नीता झा

महिला काव्य मंच की प्रस्तुति - नीता झा

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साथियों संग यादगार पल आज दिनाँक 28/01/2021 को महिला काव्य मंच जिला शाखा - रायपुर द्वारा"गणतंत्र-दिवस" के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया । इस आयोजन में "महिला काव्य मंच" रायपुर शाखा की महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और देशभक्ति से परिपूर्ण ओजस्वी रचनाएं प्रस्तुत कीं। वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती अनिता झा ने अपनी ओजस्वी कविता"देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति क्या होती है* में हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटलबिहारी वाजपेयी जी की देशभक्ति  से परिपूर्ण कविता के अंशों को बड़े मनोहर तरीके से अभिव्यक्ति दी है। श्रीमती पल्लवी झा जी की मंच की कविता *"तिरंगा"* में तिरंगे के महत्व को बताते हुए राष्ट्रिय ध्वज पर बड़ी सुंदर प्रस्तुति दी।     अगली कवयित्री श्रीमती सीमा निगम जी ने अपनी देशभक्ति से ओतप्रोत कविता *"गणतन्त्र की गरिमा"* में देश की एकता अखंडता की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए सभी से देश हित की भावना रखने का आह्वान किया है।    वहीं पल्लवी झा की कविता *"तिरंगा"* में पंक्तियों ने देशभक्ति की भावना ...