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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देश सेवा - नीता झा

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देश भक्ति- लघुकथा    उर्वी धीरे से दरवाज़ा खोल कर  आंगन में आ गई पलटकर देखा कोई जाग तो नहीं रहा है? कुछपल दरवाजे की तरफ देखती रहीं फिर कोई आहट न पाकर बाहर निकलने लगीं तभी सनद ने आवाज़ लगाई-" दादी रुकिए मैं भी आ रहा हूं"    तुम इतनी सुबह क्यों उठ गए रात देर तक पढ़ाई करते हो जाओ सो जाओ नीद पूरी करना भी तो जरूरी है    सनद कहाँ सुनने वाला था  चल पड़ा दादी के साथ ।    अच्छा दादी आप लोग इतनी सुबह उठ कर रोज पार्क में लोगों को योग,ध्यान,प्राणायाम सिखाते हैं वो भी फ्री में ऊपर से जो सीखना चाहता है उसे संस्कृत और कोई भी सब्जेक्ट पढ़ाते हैं। लेकिन क्यों करते हैं आप लोग ये सब ?    पापा मम्मी तो कह रहे थे अब आप लोग रिटायर होकर हमारे पास रहेंगे तो हमे आपको कोई काम नहीं करने देना है खूब आराम करवाएंगे"     उर्वी सनद की बातें सुनकर चोंक गईं     पर क्यों आराम करेंगे?     हमे कोई बीमारी हुई है क्या?     नहीं दादी पापा मम्मी कह रहे थे आपने और दादू ने बहुत मेहनत कीहै सबको बड़ा करने म...

हमारा उद्देश्य - निपुर्ण हर्बल - नीता झा

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निपुर्ण हर्बल में हमने उन सभी स्वास्थ्य सार्धक वनस्पतियों के संयोजन से दैनिक उपयोग में आने वाली स्वास्थ्यप्रद सौंदर्य सामग्रियों का निर्माण किया जिनकी सहायता से बिना किसी नुकसान के अपने आपको निखारा जा सके। मेरा जन्म छत्तीसगढ़ के बस्तर में हुआ है ।जो प्राकृतिक रूप से अत्यंत ही वैभवशाली रहा है।वहां की वनस्पतिक सम्पदा अत्यंत ही गुणकारी है। क्योंकि वहां के वातावरण में प्रदूषण नही है।इसी वजह से वहां की वनोषधियाँ अच्छे परिणाम देती हैं। आजकल के प्रदूषित वातावरण ,अस्वस्थ्यप्रद आहार विहार के दुष्परिणाम स्वरूप कई तरह की स्वास्थ्यगत समस्याएं होती हैं।जिसका काफी असर हमारी त्वचा व बालों की सेहत पर पड़ता है। हम ऐसे में कई तरह के केमिकल से निर्मित सौन्दर्यप्रसाधनो का उपयोग करने लगते हैं ।जो समस्या को कम करने की बजाए बढ़ा भी देते हैं और साथ ही साथ छुपा भी देते हैं ।जिस कारण तुरन्त तो पता नही चलता किन्तु कुछ समय के बाद परेशानी बढ़ने लगती है।    चूँकि बचपन से ही मैन घरेलू नुस्खों को बखूबी अपने परिवार में अच्छे परिणाम के साथ उपयोग करते देखा है। और मुझे ये सब पसन्द भी है। जब बस्तर से बाहर...

बलिदान - नीता झा

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बलिदान  केतकी ने अपनी साइकिल उठाई और गांव के बाहर वाले तालाब के किनारे पहुंच गई वहां पहुचते पहुचते उसकी रुलाई फुट गई साइकिल आम पेड़ के नीचे लगाकर वह वहां बैठ कर फुट फुट के रोने लगी उसके जेहन में सारी पिछली बातें आने लगीं किस तरह उसने अपने दादाजी और अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपनी ग्रामीण सेना बनाई थी जो रोज एक दो घण्टे कोई भी भलाई का काम करते थे पूरे महीने भर का प्लान पहले से बना कर रखते थे दादाजी की देखरेख में सब काम बहुत व्यवस्थित होता था अपने  सेना में रहने के समय के बहादुरी भरे किस्सों के साथ ही वे अपने साथी भाइयों के बलिदानों के किस्से बताया करते साथ ही बच्चों में उच्च आदर्शों का बीजारोपण भी करते रहते उनमें नेतृत्व की छमता भी गजब थी अब तो बच्चों के साथ साथ बड़े भी उनकी इस पुनीत कार्य में मदद करते थे।   पिछले महीने ही तो दादाजी ने फलदार पेड़ों के पौध लगवाए थे ताकि आने वाले बरसात के मौसम में हर घर में एक एक फलदार पेड़ हों।    कुछ दिन पहले की ही तो बात हैअटैक आने से दादाजी चल बसे थे बहुत कोशिशों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका था  तबसे वह इधर आ ...

हम - नीता झा

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"अफसानों को याद नहीं मेंं चन्द दििनों में ही बरसों पीछे चला गया हूं। " हम हमेशा से ही लगातार चलते घटनाक्रम में इतने ज़्यादा उलझे होते हैं कि बड़ी बड़ी घटनाएं भी चन्द दिनों में विस्मृत सी हो जाती हैं और हम खारे समंदर में फेंके खुद के कचरे को वापस समंदर द्वारा हमपर फेकते हुए देखते रहते हैं हर लहर अपने साथ हमे वही सब देती जाती है जो हमने समंदर को दिया होता है और हम अपने अपने तरीके से चर्चाएं करते हैं समंदर ने बस्तियां उजाड़ दीं, समंदर ने जहाज़ को निगल लिया, नदियां जहरीली हो गई, हवा प्रदूदशीत हो गई और तो और हमारा भोजन जहरीला हो गया सही भी है सारा कुछ हमारे लिए हानिकारक हो गया है सच पूछा जाए तो हमने ही अपने स्वार्थ और अज्ञानता से खुद ही ज़हर घोला है और घोलते ही जा रहे हैं। यह तो पर्यावरण प्रदूषण का स्तर है जो लगातार बद से बदतर होता जा रहा है इससे भी विकट समस्या वर्तमान समय मे हो रहे संस्कारिक पतन की भी है। जिसपर पूरा देश दुखी और परेशान है। विभिन्न अपराधों विशेष कर बलात्कार के खिलाफ  लगातार हो रहे जन आंदोलनों,विरोध प्रदर्शन इत्यादि का कोई भी खास असर नहीं हो रहा है जिस कारण इस...

प्यारी गुड़िया - नीता झा

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माँ- बाबा की प्यारी गुड़िया हौले-हौले बढ़ रही है पेट में हाथ- पांव मार दोनों को हर्षा रही है माँ- बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही है घर में किलकारियां मार  गुंजायमान कर रही है माँ-बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही है आंगन में नन्हे कदमों ठुमकती इठला रही है माँ- बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही है बालमंदिर में सीखी जो वो मीठे गाने सुना रही है माँ-बाबा कि प्यारी गुड़िया हौले हॉल बढ़ रही है कभी रंगोली, पेंटिंग तो कभी रोटियां बना रही है माँ-बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही है दादा-दादी की दुलारी कभी तुनकती, इतराती कभी चश्मे तलाशती कभी कहानी सुनती माँ-बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही है अपने शौक निखारने मनोयोग से लगी हुई है माँ-बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही है अपने मासूम सौंदर्य को दर्पण में निहार रही है मा- बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही है बढ़ते खर्चों से सकुचाई खुद ही कुछ बना रही है माँ-बाबा की प्यारी गुड़िया हौले हौले बढ़ रही...

मायका - नीता झा

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मायका मायका जिसकी शुरुवात ही माँ से हो वहां के कण कण में वात्सल्य भर होता है बशर्ते आप जब वहां की देहरी में कदम रखें अपनी उपलब्धियों, विशालता के दम्भ को बाहर किसी सिंहासन में सजाकर फिर अंदर आएं फिर देखिए वोही हाथ आपके सर सहलाएँगे जिनकी थपकियों मेंआप बचपन से मीठी नींद सोती आई हैं वहां कितना अकूत भंडार होता है स्नेह, वात्सल्य का नाना, नानी,दादा, दादी, मामा, मामी, मौसा, मौसी, बुआ,फूफा, चाचा, चाची, भैया, भाभी,दीदी, जीजाजी बचपन की सहेलियां ,पड़ोसी, शिक्षक ,सहपाठी और न जाने कितना कुछ उतने ही छोटे रिश्ते भी और हर किसीके साथ हमारे बचपन की मासूमियत भरे खूबसूरत संस्मरण वहां की दरो-दीवार यानि समूचे परिवेश में समाहित हम और हमारी यादें I   समय कई रिश्तों को अपने में समाहित कर लेता है पर यादें हमेशा वैसी ही ताजी जीवंत होती हैं किसी  महकते लचकते खूबसूरत खुशबूदार फूल की तरह     नीता झा       

कहाँ गए वो दिन

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बैठती नहीं चिड़िया दालानों में जहां कभी झुंड लगाए रहतीं थीं अब वो पेड़ भी नजर नहीं आते  जहां चिड़ियों के होते थे घोंसले वो फुदकती चिड़िया, गिलहरियां और छोटे बड़े सारे जीव कहाँ गए न जाने शायद हमसे रूठ से गए शायद अब हममें हमसा कुछ नहीं जो उन्हें हमसे जोड़े रखता था कई मुट्ठी अनाज का वो आसरा धीरे - धीरे हमने बन्द कर दिया अब हम कुटुंब से परिवार हो गए मुट्ठियों से अकेली मुट्ठी भी हो गए  वो कुटुंब जहां कायदे सीमित होते  पर फायदे हमेशाअसीमित होते थे  जहां खाने के स्वाद,संवाद साझे होते   लोग बहुत पर फैसले एकमत होते  घर की बातें घर तक रहती सीमित  चाहे महीनों घर पर मेहमान होते  हर रिश्ते की मिठास गजब और  बड़ों की डांट से थी जान सूखती  थी बड़ी सी रसोई, ढेरों बर्तन पर  खड़कने की आवाज़ें ज़रा कम थी नीम तले बनती ढेरों बड़ी, बिजौरी भर - भर  मटकियों में डलते अचार शाम की सब्जी, सुबह का अख़बार दादी-बब्बजी का स्वभाव मिलनसार दिन भर चढ़ी रहती देगची चाय की कोई भूखा - प्यासा न लांघता देहरी होतीं हर तरह के ज्ञान- धर्म की बातें देशभक्ति, कर्तव्यपरायणता क...

दुल्हन

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             कंचन काया कुछ छुपी हुई.. कुछ बिजली सी कौंध रही!! गहनों की रुनझुन लय संग.. संवाद प्रणय के बोल रही!! शाल्मली सी काया में जब.. रेशम की कोमल पहरेदारी!! तेरी नटखट अँखियाँ कह.. घूंघट से जाने क्या बोल रही!! बंद अधर से संवाद करती.. तेरी भोली मुस्कान नशीली!! बांध रही क्यों मोहपाश में.. तेरी निश्छल छवि निराली!! सुध बुध कोई कैसे ना खोए.. जब मेनका हो सम्मुख खड़ी!! तेरे रूप के कोलाहल में.. अस्तित्व मौन सा हो गया है!! कंचन बदन की आंच में दहक.. मन पारे सा पिघल रहा है!! नीता झा

दुल्हन

किसी पे तंज कसने से पहले

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किसी पे तंज कसने से पहले ख़ुद को भी परखना चाहिए  जब हम खुद का आंकलन सही करते हैं तो दूसरों की कमियां नहीं दिखतीं हमारा अपना नजरिया जितना व्यापक होगा हम उतना ही दूसरों की अच्छाइयों को महसूस कर पाएंगे    सौम्या ने वीकेंड अपनी सारी स्कूल फ्रेंड्स को बुलाया एक ही शहर में होने के बावजूद सबका आपस मे मिलना नहीं हो पाया था। सबकी अपनी अपनी ज़िंदगी अपने- अपने मायाजाल ।   प्राची,तान्या,वैशाली और सौम्या ने स्कूल ,कॉलेज की पढाई एकसाथ ही की सब्जेक्ट चाहे अलग अलग थे कॉलेज एक था। सबकी फैमली भी आपस मे घुली- मिली थी । सुमि की शादी का समय आया परिवार के अलावा इन फ्रेंड्स की सलाह  भी उतनी ही महत्वपूर्ण थी कुल मिला कर ये अलग अलग फूलों के खूबसूरत से गुलदस्ते थे।   सौम्य की शादी को 4 महीने हुए थे सबसे पहले उसी की शादी हुई थी तो सारी सहेलियां उसका घर परिवार देखने को बड़ी उत्सुक थीं और उसने अबतक किसी को लंच या डिनर पर नहीं बुलाया था बाहर उनका मिलना हुआ था वो वरुण के साथ सबके साथ मिली थी लेकिन उसके घर उसकी चंडाल चौकड़ी नही आई थी । सबसे ज्यादा तान्या छेड़ती थी उसने तो कंजूस कपल...

अभी टूटा नही है सब्र - नीता झा

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मैं बंजारा (लघुकथा) - नीता झा

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मैं बंजारा मालिनी मूवर्स एन्ड पैकर्स वाले को फोन लगा रही थी। पहल, प्रिशा गुमसुम से सोफे में बैठे थे। मुझे बहुत से काम थे लेकिन बच्चों की मायूसी मुझे उनके करीब खींच लाई थी मेरे पास बैठते ही नन्ही प्रिशा मुझसे लिपट गई और पहल भी मेरे पास सरक कर बैठ गई मैन उनकी उलझन पढ़ ली थी और बस इतना ही कहा -क्या हुआ मेरी परियां उदास क्यों हैं? प्रिशा ने शिकायत और उदासी के मील जुले स्वर में कहा-" पापा आपका फिर ट्रांसफर हुआ है मम्मा बता रही थीं वहां और भी ज्यादा फेसिलिटीज हैं पर पापा 15 फैब दी के बेस्ट फ्रेंड तनिष्क का बर्थडे है उसने ग्रेंड पार्टी ऑर्गनाइज की है पापा सबने हमे बहुत रोक है क्या करें ?" पहल ने कुछ कहा नहीं पर प्रिशा की बातों में सहमत लगी टीनएजर्स की फ्रेंडशिप मतलब भरोसे, अपनेपन, प्यार, स्वप्नलोक का पहला  पायदान ज़िंदगी की कभी न भूलने वाली दोस्ती और प्यार की पहली फुहार जिसे बच्चे या तो समझ ही नहीं पाते या बता नहीं पाते, मैं चुप था समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूँ एक महीना रुक भी नहीं सकता इतनी दूर आना लगभग असम्भव ही था मैं आश्वासन देकर मुकरना नहीं चाहता था अपनी नोकरी की ...

स्त्री - (कविता) नीता झा

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स्त्री जब जाए  मर्यादा के बाहर पांव की बिछिया  उलझ जाती है  देहरी की पायदान से स्त्री जब जाए मर्यादा से बाहर। पांव की पायल शोर मचाती है अपने छोटे छोटे घुंघरुओं से रुकने की मनुहार करती है स्त्री जब जाए मर्यादा के बाहर कमर की करघनी  अवगत करती है  बोझ भरी जिम्मेदारी से स्त्री जब जाए मर्यादा के बाहर उसके मंगलसूत्र के एक एक मनके खिंच लाते हैं वापस घरकी चारदीवारी के भीतर स्त्री जब जाए मर्यादा के बाहर मांगटिका ज्ञानचक्षु को  ढँक लेता है और सामाजिक मायाजाल के सम्मोहक दायित्वों के नाम ता-उम्र समझौते करवाता है स्त्री जब जाए मर्यादा के बाहर उसका लिबास उसे ढंक लेता है छुपा लेता है उसे सारे कुत्सित जनो से सबसे छुपाए रखता है सात पिंजरों के भीतर रंगमहल में रखलेता है मर्यादा के चटकीले भ्रामक गहनो से खूब सजा पर  स्त्री की खुशी क्या है? उसकी काबिलियत क्या है? और उसका दृष्टिकोण क्या है? कोई नही पूछता, वो क्या चाहती है पुरुषप्रधान समाज  पूछ नही पाता क्योंकि घबराता है  स्त्री से और उसकी अदम्य इक्छा शक्ति से फिर उसे डराता है तरह तरह की कथाओं से, बहकाता...

मम्मी की मुस्कुराहट - (लघुकथा) नीता झा

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शाम होने को आई थी और पूर्वी अबतक घर नहीं आई थी।अनुजा को थोड़ी चिंता हुई फिर मन ने तर्क  दिया शायद अपनी फ्रेंड रिया के घर गई होगी अनुजा पहले इतनी परेशान नहीं होती थी पर आजकल कई घिनोने केसेस होने लगे हैं तो बच्चे बाहर जाते हैं और इधर मन घबराने लगता है परसों की ही बात है अनुजा ने पूर्वी को तीन घण्टे में दो बार फोन लगा दिया पहले वो ऐसा नहीं करती थी पूर्वी ने घर आकर कहा मम्मी आप बार बार फोन क्यों लगा रहे थे मैंने बताया तो था शैली के साथ प्रोजेक्ट बना रही हूं आप बहुत डरते हो। उसकी समझ में नहीं आया क्या कहे दीपक ने  बात सम्हाली बेटा तुम्हारी माँ तुम्हारी सुरक्षा को लेकर थोड़ी भयभीत है तुमसे प्यार जो इतना करती है।    बात आई गई हो गई आज फिर वो घबराने लगी शाम हो रही थी वो शाम की आरती करने पूजा कमरे में गई ही थी की पूर्वी ने उसे पीछे से आकर गले लगा लिया फिर दोनों ने आरती की फिर उर्वी ने कहा मम्मी आप ना मुझे हमेशा मुस्कुरा कर विदा करती हो पर कुछ दिनों से वो मुस्कान गायब है।        हां बेटू मुझे तेरी बहुत फिक्र होती है उसने बीच में ही बात काटकर कहा अ...

दीवारों के भी कान होते हैं - नीता झा (कहानी)

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     सफलता पर लेषमात्र भी संशय न था किन्तु डर था कहीं कुछ ऐसा न हो जाए जिससे कहीं कोई गड़बड़ हो और इन तीनो भाई- बहन की सारी तैयारी धरि की धरि रह जाए तीनो रात में काफी देर तक कल सुबह की तैयारियों पर चर्चा करते रहे सनी के बड़प्पन का स्नेहा और सनद सम्मान करते थे पर स्नेहा सनद की चर्चा बार बार झड़प में बदल जाती तब सनी ही शांत कराता।      इधर परेश प्रीति की आंखों से भी नींद नदारत थी जिस अवकाश को नौकरी के दौरान तरसते थे वो अब हमेशा के लिए रिटायरमेंट की शक्ल में उन्हें डरा रहा था थे।             खैर न वक्त रुकता है न वक्त के निर्धारित फैसले, कल सुबह उठना भी है कह कर प्रीति ने लाइट ऑफ करदी      सुबह सुबह दैनिक कार्यों से निवृत होकर जब प्रीति परेश हॉल में आए उनकी सोच के विपरीत घर पूरी तरह से साफ सुथरा, व्यवस्थित था, कल ऑफिस विदाई समारोह से लौटने के बाद वे सब काफी थक गए थे तो सब सुबह समेटेंगे सोचकर बच्चे ऊपर आराम करने चले गए थे।            प्रीति समझ गई उसे ज्यादा थकी हुई देख प्रा...