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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वर्तमान को सँवारें नीता झा

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शैली जल्दी-जल्दी सारे काम निपटा रही थी। कामवाली के बिना पूरे घर का काम सम्हालना बड़ा मुश्किल हो रहा था। वैसे आजकल सभी लोग घर में होते हैं, तो बिना कहे ही सब में काम बंट गया है। सुबह बच्चे मम्मी- पापा के साथ योग वगैरह से फ्री होकर नहा कर पूजा करने लगे हैं। तनु- मनु बड़ी खुशी से अपने दादा- दादी से धर्म- कर्म की बातें सुन समझ रहे हैं। कभी कभी तो उनकी दिलचस्प बातों में शैली सोहम भी मशगूल हो जाते। सुबह की चाय से रात के दूध  तक साथ ही खाते - पीते खुशनुमा समय बिता रहे हैं।    विकट महामारी ने जहां देश समेत पूरी दुनियां में तबाही मचा रखी है वहीं, सबसे सुरक्षित जगह बना घर, रिश्तों को बांधने का भी काम कर रहा है।बड़े दिनों बाद सब इतने लंबे समय तक एक साथ हैं। शैली का परिवार बड़ा ही सुलझा हुआ सुखी, संतुष्ट परिवार है। वहीं शैली ने भी हमेशा सबका मान रखा। कल तनु-मनु के स्कूल से मैसेज आया था,जल्दी ही उनके स्कूल खुलने वाले हैं। शैली इसी वजह से हड़बड़ा रही थी। बच्चों की पढ़ाई को ले कर वो बहुत सीरियस थी। बच्चे भी बड़े अच्छे नम्बरों से पास होते, अभी भी वह चाहती थी उसके बच्चों की सारी तैयार...

मेरे ये बच्चे - नीता झा

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मैं माँ हूं इस लिहाज़ से बच्चों को सोचना, उनके इर्द-गिर्द घूमते, मंडराते उनमें अपने सुख-दुख तलाशते जीवन इतनी तेजी से बीत गया पता ही नहीं चला जब मेरे मातृत्व को और नए-नए नाम मिलने लगे उनकी गरिमा मेरे व्यक्तित्व में दिखने लगी तो लगा जीवन अपनी पूर्णता की ओर बढ़ चला  सुखद रिश्तों का असीम आनन्द यही तो है जीवन की पूर्णता का सुखद अहसास।     दरअसल बचपन से ही हर जीव में स्नेह की भावना  स्वाभाविक रूप से होती है। जो जीवन के तमाम पड़ावों में अपना स्वरूप बदलती रहती है।  जब छोटे बच्चे अपने आसपास हो रही घटनाओं से जुड़ते जाते हैं तो वह भी सुख दुख के साथ प्रतिक्रिया देने लगते हैं। बड़ों की पीड़ा पर बरबस ही उनका अपने नन्हे हाथों से सर दबाना ही तो ईश्वर प्रदत्त स्नेहामृत है।   जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं स्नेह व्यक्त करने के तरीके में थोड़ा फ़र्क आने लगता है। लड़कियों में ममत्व झलकता है तो लड़कों में परवाह अपने छोटे भाई बहन, भतीजे- भतीजोयों, भांजे- भांजियों, बहु- दामादों से होता हुआ कब वह स्नेह भाव भाभी माँ, चाची माँ, मासी माँ, बड़ी माँ, सासु माँ, मामी, नानी माँ, ...

बारिश की ऐसी भी तैयारी - नीता झा

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लॉक डाउन के कारण ही सही हमने पर्यावरण प्रदूषण को काफी हद तक कम किया ! फ़र्क भी महसूस किया दूर दूर तक साफ आसमान, चाहे वजह बुरी हो पर पर्यावरण की दृष्टि से बहुत कुछ सम्हल गया।  अब बढ़ती गर्मी और कटते पेड़ भी चिंता का विषय हैं अब हम लोग पूरे फर्श लगाकर उसपर गमले लगाने लगे हैं सुंदर तो लगता है पर बारिश का पानी ज़मीन तक नहीं पहुंच पता ऊपर से कंक्रीट के जंगलों में इतने उलझ गए पेड़ लगाना भूल ही गए।   अब हमे वृक्षारोपण की तरफ भी ध्यान देना होगा हर इंसन की यह जिम्मेदारी है। क्योंकि हमारा जीवन ही ऑक्सीजन पर निर्भर करता है तो ज्यादा न सही इतना ऑक्सीजन तो हम पृथ्वी को लौट ही सकते है जितना हमने उपयोग किया।  विचार तो बड़ा अच्छा है पर क्रियान्वयन थोड़ा मुश्किल तब जब हमारे पास जमीन की कमी हो ऐसे में कुछ उपाय कर सकते हैं इसके लिए करना बस इतना है की जब भी हम कोई फल, सब्जी काटते हैं जैसे- आम, अमरूद, संतरा, मुसम्बी, कटहल,जामुन इत्यादि के बीजों को अच्छी तरह से धो कर सूखने के बाद गोबर और मिट्टी में मिलाकर टेनिस बोल के आकर के गोले बनाकर अच्छे से सुखा कर डिब्बों में रखलें। ...

चलो यहीं रहते हैं - नीता झा

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दसरी जल्दी जल्दी कदम बढ़ती घर की तरफ बढ़ रही थी। अचानक धुंधलके में आज फिर पत्थर से टकरा गई पिंडली में दर्द हुआ शायद थोड़ी बहुत खरोच आई होगी उसने हाथ लगया तो गीला-गीला लगा शायद थोड़ा बहुत खून निकल गया होगा दर्द की परवाह किए बिना चली जा रही थी। इतने में दीदी दिख गई बैठने कहा वो नहीं मानी दीदी ने देखा वह अपनी साड़ी में कुछ रखे हुए थी क्या है? कुछ नही बस थोड़ी सी चना भाजी है मंगली के साथ मिलके तोड़ी थी तो वो बनाई तो थोड़ी भाजी दी है। चना भाजी! दीदी की आंख चमक गई दसरी को पता था वो जहर भी खाएगी तो वो दीदी को चाहिए मुस्कुरा कर बोली चल अंदर थोड़ी तू भी ले ले दोनों बहने अंदर गईं अभी बैठी भी नहीं थी कि रतन आ गया" माँ ...कबसे ढूंढ रहा हूं ! बताके भी तो आना था रात हो गई ! फिर अपनी मौसी की तरफ देखकर बोला "पता है मौसी आजकल रात में थोड़ा कम दिखता है कितनी बार बोलता हूं कहीं जाओ तो किसी को साथ रख लिया करो पर माँ माने तब ना" यहां काहे का डर? ये उसका अपना गांव है बेटा यहीं जन्मी है   गांव में क्या डर तू बहुत चिंता करता है  फिर दीदी की तरफ देखकर बोली दीदी जल्दी कटोरी ला अब घर जाऊंगी घर म...

गांव - नीता झा

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गांव का सबके लिए अलग अलग मतलब होता है। मेरे लिए गांव का मतलब सुकून, मेहनत और भाईचारा एक गांव  मतलब बहुत से तामझाम  नहीं बल्कि जरूरत भर कटते पेड़, बढ़ते खेत, खेत से लगी झोपड़ियां, झोपड़ियों से लगी चौपाल, चौपाल से लगा स्कूल, स्कूल से लगा मैदान जहां साप्ताहिक बाज़ार, मेला, खेल-कूद, और सभी वृहत उत्सव मन जाएं  अलमारियां नहीं एक ही अलमारी हर कमरे में नहीं पूरे घर में एक टी वी समस्या भी सबकी समाधान की फिक्र भी सबकी  कुल मिलाकर ये सारी बातें उस छोटे से भूखण्ड  को स्वर्ग से भी सुंदर बनाती है। फिर ऐसा क्या है कि वहां का माटी पुत्र अपनी जड़ों से कट कर शहर के व्यस्ततम और कोलाहलपूर्ण वातावरण के सबसे निचले पायदान पर काम करने को निकल पड़ता है। कहीं इसका कारण जिम्मेदार लोगों की गैरजिम्मेदाराना कार्ययोजना तो नहीं यदि ऐसा है तो बंद कमरों में बैठ कर नहीं उनके बीच जा कर उनके हित में कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए उन्हें क्या अच्छा लगता है और उनके लिए क्या अच्छा है इन दो बिंदुओं पर संतुलन बनाकर काम करेंगे तो सबके लिए बहुत अच्छा होगा हालत को नजरअंदाज न करके उपाय पर ईमानदारी से काम ह...

क्या उनसे बात की - नीता झा

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शारदा देवी दिन भर परेशान रहतीं बड़े बेटे तनय का फोन नहीं आया कभी शुचि कभी अपने ननद, देवर, बहन, भाई और न जाने कितने रिश्तेदारों को बैठे बैठे याद करती रहतीं पंकज जी कई बार नाराज भी हो जाते उनकी इस आदत पर लेकिन यह भी सच था की उनके साथ पंकज जी भी सबसे कुछ बात कर ही लेते चाहे शारदा जी की हंसी उड़ाने के बहाने ही पर जल्दी से फोन खींच लिया करते।   यह हाल अमूमन हर घर का हो गया है जहां के बच्चे पढ़ने, कमाने को अन्यत्र रहते हैं।  बड़ा खाली-खाली सा लगता है। मन करता है बार बार मिल आएं जाते भी हैं सबको सकुशल देख खुशी से वापस घर आते हैं। अब घर में बचे दो लोग एक दूसरे को देखते समझते सही मायने में एक दूजे के लिए बने यह समय होता है एक दूजे की परवाह करने का खट्टी मीठी तकरार कर प्यार से कभी मनुहार से मनाने का और अपने सभी रिश्तों को कुशल माली की तरह की तराशने का तो कभी अपने अपनो के बीच बैठ कर अपनी मुश्किलें सुलझाने का जैसे अधपका फल अपनी मीठी खुशबू से पूरे वातावरण को अपने होने का सुखद अहसास करता है! जैसे अधखिला फूल अपनी मोहक खुशबू से मन खुश कर देता है वैसे ही अपने जीवन मूल्यों का सही पोषण क...

मातृ दिवस - नीता झा

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मातृ दिवस के आते ही अम्मा और बच्चों के बीच मन विचरने लगता है। अम्मा जिनसे जीवन मिला, संस्कार पाया जीने की शर्तों के साथ खुशियों की अठखेलियों से सामंजस्य करना आया उनके अलावा भी नानी पक्ष और दादी पक्ष के सभी रिश्तों से, भाभियों से कितना ममत्व मिला सभी से जाने अनजाने कितना कुछ सिखे- समझे पता ही नहीं चला अल्पायु में ही अम्मा का साया सर से उठने के बाद भी आज तक मुश्किलों से बाहर निकलने के रास्ते मिल जाते हैं वो दो जोड़ी आंखे माता-पिता की जो हमेशा हम भाई बहन की परवाह में ही लगी  होतीं आज भी जब कभी दुख, पीड़ा हो तो उनकी सिख हमारी मुश्किलें आसान करती राह दिखाती हैं।     माँ स्त्री है पर मातृत्व दुनियां की सबसे कोमल भावना जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हमे सहारा देती है।     जब हम जन्म लेते हैं परिवार आसपड़ोस की तमाम मातृ शक्तियां हमे अपने अपने अनुभवों शिक्षा से सुसंस्कृत बनाती हैं। शिक्षा, व्यवसाय या जॉब कहीं भी जाएं हर कदम पर मदद को तैयार होती हैं जब किसी की शादी तय हो जाए तो उस परिवार के साथ सबलोग बड़े उत्साह से लग जाते हैं। विदाई भी ऐसी की सबकी आंखें नम हो जाए और ज...

युवराज सिद्धार्थ से बुद्ध तक - नीता झा

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आपसभी को बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं , 2500 वर्ष पहले एक व्यक्ति का अपना सारा सुख वैभव त्याग के सन्यास लेने का प्रण करना और अपना पूरा जीवन जनकल्याण हेतु समर्पित करना कैसा रहा होगा ?  उनके माता-पिता, सगे- सम्बन्धियों ने कैसी- कैसी प्रतिक्रियाएं दी होंगीं ?  जब उनकी पत्नी रानी यशोधरा ने उन्हें पुकारा होगा वो कितने चट्टान से भी कठोर मनोबलवाले व्यक्ति होंगे जिन्होंने सहर्ष ही सन्यास का वरण किया होगा ?   कहते हैं रानी यशोधरा ने उनके सन्यास मार्ग में कभी बाधा नहीं डाली बल्कि बाद में उनके परिवार ने भी सन्यासी का जीवन अपनाया और युगों युगों तक सारी दुनिया को शांति का मार्ग दिखाया।  जाती-धर्म, देश- काल और आडम्बर से रहित आत्मबल से अलंकृत भगवान बुद्ध का मन में ध्यान आते ही एक सौम्य, आभामंडल से युक्त वात्सल्यमयी निर्मल छवि उभरती है। बुद्ध जिन्होंने युवराज सिद्धार्थ गौतम  से बुद्ध तक के दुर्गम मार्ग का चयन किया और अपने राजसी वैभव, सुखद वैवाहिक जीवन, मित्रवत पत्नी पुत्र को त्याग कर सन्यासी बने।   हर किसी के लिए आसान नहीं होता अपने आपको समाप्त कर बुद्ध हो...

घर मे अपनो की देखभाल - नीता झा

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    आजकल मेडिकल साइंस ने बहुत प्रगति कर ली है बड़े से बड़े रोगों का इलाज बहुत अच्छे से हो तो जाता है फिर जब वे घर आते हैं उसके बाद मरीज और उनके परिजन स्वास्थ लाभ के सारे जतन करते हैं और उनके यही प्रयास मरीज को जल्द से जल्द ठीक करते हैं।    आज हम इसी विषय पर विमर्श करेंगे की मरीज के घर आने के बाद हम उसका ध्यान कैसे रखें।    यदि कुछ ही दिनों में ठीक होने वाली बीमारी अथवा तकलीफ है तो डॉकटर के बताए परहेज और दवाओं से मरीज ठीक हो जाते हैं वहीं गम्भीर बीमारी और लंबे चलने वाले इलाज में मरीज और परिवार को अन्य कई तरह की तैयारियों की जरूरत होती है शारीरिक, मानसिक और आर्थिक ऐसे में धैर्यपूर्वक निदान पर विचार जरूरी हो जाता है।    डिस्चार्ज होने से पहले मरीज के खान- पान, व्यायाम, दवाओं के विषय में अच्छी तरह से जानकारी ले लें कुछ समझ में न आए तो दोबारा पूछें और लिखे। क्या बिल्कुल नहीं खाना है और क्या नहीं करना है यह भी नोट करें , अगली बार कब डॉक्टर से मिलना है, अचानक जरूरत पड़े तो किसे फोन करें यह भी सुनिश्चित करें।    घर पहुंच कर मरीज के साथ ...

मनुष्य, मदिरा और मौत - नीता झा

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कल सुबह से विभन्न माध्यमो से लगातार खबरें बताई और दिखाई जा रही थीं। शराब दुकान खोली गईं, सड़कों पर शराबियों का जमावड़ा, मदिरालयों में उमड़ी भीड़ और भी न जाने कुछ कुछ ऐसे में मन में विचार आया दारू भट्टी कहें या मदिरालय, सस्ती हों या महंगी, देशी हों या अंग्रेजी चाहे कुछ भी हो है तो एल्कोहल ही।   लोगों को इसकदर जान जोखिम में डाल कर शराब खरीदते देख अजीब लगा पता नहीं इतना सब जान समझ कर भी लोगों को अपने साथ - साथ अपने सम्पर्क में आने वाले उन तमाम जाने अनजाने लोगों की ज़रा सी भी फिक्र नहीं है    क्या वे भविष्य में होने वाली मौतों की आशंका के मुख्य किरदार बन गए हैं ?     क्या उन्होंने अपने जीवन के उन सभी दायित्वों का पालन कर लिया है ! जो सिर्फ और सिर्फ उनके हिस्से आया है ?    कोई ऐसे कैसे अपने कारण बहुतों की जिंदगी दांव पे लगा सकता है ?    और सबसे अहम सवाल जहां लोगों को दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से मिल रही है वहां शराब के पैसे कहां से आते हैं ?    या तो घर के समान, जेवर या मुश्किल वक्त के लिए जमा राशि खर्च हो गई होगी या सरकार ...

खाद्य सुरक्षा- वर्तमान समय की महती आवश्यकता - नीता झा

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  अभी लॉक डाउन के चलते कहीं बाहर नहीं निकला जा सकता ख़ास कर रेड जोन अर्थात अधिक संक्रमण वाली जगहों पर बिल्कुल भी नहीं वैसे तो हम किसी भी जोन के अंतर्गत आते हों  बहुत जरूरी न हो तो बिल्कुल भी नहीं निकलना है हमारा अभी घर में रहना हमारे भी और देश दुनियां के लिए भी बहुत जरूरी है।   सब यही उम्मीद करते हैं स्थिति सामान्य हो जाए लेकिन सब सामान्य होने में कितना समय लगेगा कहा भी नहीं जा सकता जब अनिश्चितकालीन समस्या हो तो व्यवस्था भी जरूरी हो जाती है।  तो आइये कुछ इस सम्बन्ध में भी विचार करते हैं। ताकि विषम परिस्थिति से निपटा जा सके अभी काफी तेज़ धूप होती है। ऐसे में अपने सारे मसालों, अनाज, भारी कपड़ों इत्यादि को धूप में सुखा सकते हैं। नेपथिलीन की गोली या सुखी हुई कड़वी नीम की पत्तियों के साथ रखें यदि बारिश तक कोरोना वायरस का प्रकोप खत्म न हुआ तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं ऐसे में संरक्षित खाद्यानों का होना बहुत जरूरी हो जाता है। इसके लिए अपने परिवार की जरूरत और पसन्द  के अनुसार पापड़, चिप्स,सेव, बिजौरी, तिलौरी, बड़ी आलू की करी इत्यादि का संग्रह करना अच्छा होगा। हमा...

पगडंडी - नीता झा#

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जहां जा सारे रास्ते बंद हुए  वहीं उम्मीद की पगडंडी थी मैं चलता चिकनी चौड़ी सड़कों पर मगर मंज़िल तक वो जाती न थी जहां हुए सारे चिकने रास्ते बंद वहीं से लगी पथरीली पगडंडी थी इठलाती- बलखाती पतली पगडंडी  मंज़िल तक पहुंचाने का वादा करती  मुझे संग ले चलने को आतुर हठीली  चल पड़ा मैं भी उत्तुंग शिखर पर कभी घने जंगलों से जगह ले उधार चंचल हिरणी सी कुलांचे भरती तो कहीं विशाल पर्वतों को लांघती कभी नदियों झरनों संग घुलमिल उनमें डूबती उतराती मजे कराती अगले ही पल आगे बढ़ मुझे खींच बरबस ही वह याद दिलाती मंज़िल नहीं यह सिर्फ पड़ाव है जाना अभी तो इन सबसे पार है जो थी पहले पथरीली टेढ़ी मेढ़ी लगती सुंदर अलबेली अपनी सी मन भर जाता मंजिल निकट देख मैं व्यथित रुक,रुक कर चलता आ लगा अब अंतिम पड़ाव पर मुझे ला इस पड़ाव पर वह भी कुछ दूर ठिठक कर रुक गई है सुनहरे सफर की याद दिलाती परलोक के मुहाने पड़ी हुई है   नीता झा

खूबसूरत से हस्ताक्षर - नीता झा

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  पिछले कुछ दशकों से हमारी जीवन शैली में बहुत ज्यादा बदलाव आए हम बहुत बड़ी जगहों और खुले हवादार घरों से हट कर छोटे घरों या अपार्टमेंट में रहने लगे आबादी का बढ़ना, संयुक्त परिवारों का विघटन और महिलाओं के सभी छेत्रों में सफलतापूवर्क पदार्पण ने परिवार की व्यवस्थाओं और जीवनयापन के तरीकों में काफी बदलाव देखा गया है। जिससे बाजारवाद ने हमारे देश में अपनी पैठ गहरे तक जमा ली अब हमारे घरों में साल भर के अनाज, अचार, पापड़ जैसे खाद्य संरक्षण का चलन काफी कम हो गया है। अब दीवारों पर हाथ की बनी पेंटिंग, घर में जगह जगह पर सभी सदस्यों के शौक और कला के खूबसूरत हस्ताक्षर नहीं दिखते अब तो हर प्रान्त हर की चीजें हर तरह की सभी चीजें घर बैठे ऑनलाईन मार्केटिंग के माध्यम से बड़ी आसानी से मिलने लगी हैं। इसके फायदे तो हैं आप दुनियां के किसी भी कोने में हों अपने पसन्द की चीजें सहजता से पा सकते हैं साथ ही नुकसान ये भी है कि हम जो चीजें अपने घर में तैयार करते थे उन्हें भी खरीदने लगे हैं इससे समय तो बचा किन्तु नई पीढ़ी उन चीजों को बनते नही देख पाई इससे उन्हें उसपर की गई मेहनत और आपकी कलात्मकता नहीं दिखी अ...